12/04/2023
आज के हालात को देखते हुए सहज ही विश्वास नही होता कि पहले के जमाने मे हमारे बुजुर्ग बच्चों के कैसे आसानी से परिणय सम्बन्ध स्थापित कर देते थे!
आज हालात इतने जटिल है कि जीवनसाथी चुनने के लिए बच्चों की उम्मीदें, अपेक्षाएं आसमां छू रही है, बच्चों से भी ज्यादा उनके माता पिता की उम्मीदें बुलंदी पर है, अपने चश्मे चिराग या सोनचिरैया के लिए विश्व का सर्वश्रेष्ठ चयन करने को आतुर है, इसी चक्रव्यूह के कारण बच्चों की विवाह की उम्र 30-32-34 -36 वर्ष से भी पार हुई जा रही है।
BOY may be 40 but his family wants young girl only that too with all match points upto their expectations thus again delaying the finalisation process.
मै भी अपने बच्चों के लिए उपयुक्त चयन की तलाश में हूँ लेकिन मेरे पास जितने भी कॉल आये, अधिकतर पेरेंट्स का पहला सवाल यही सवाल होता है कि बच्चे का पैकेज कितना है, उनको परिवार के विषय मे जानने की कोई दिलचस्पी नही होती, ऐसे में खीज पैदा होना स्वाभाविक है, अरे भाई, पैकेज कम भी होगा तो बढ़ जायेगा, अभी तो बच्चों की व्यावसायिक जिंदगी शुरू हुई है और, क्या पैसा ही सर्वोपरि है?
अगर परिवार संस्कारवान है तो बच्चा स्वाभाविक रूप से संस्कारी होगा, पुराने जमाने मे हमारे बुजर्ग सबसे पहले परिवार या खानदान को देखते थे, परिवार पसंद आने पर लड़के को देखते थे, पैकेज या आमदनी की उस वक्त कोई खास भूमिका नही होती थी, लड़का बस कामकाजी होना चाहिए था। साथ ही दिमाग मे यह सवाल भी उठता है कि मान लीजिये, लड़के का पैकेज बहुत अच्छा है लेकिन वो शराबी एवं नशेड़ी है तो क्या चलेगा? ऐसे में आप पैकेज के चक्कर मे अपनी बेटी को अपने ही हाथों से कुएं में तो नही धकेल रहे, यह एक विचारणीय प्रश्न है।
साथ ही दूसरा सवाल जो अक्सर पूछा जाता है कि बच्चा जॉब कहाँ करता है। अधिकतर लड़की वालों की चाहत होती है कि लड़का माता पिता से दूर किसी शहर में जॉब करता हो ताकि उनकी बेटी को सास ससुर के पास रहना न पड़े, साथ ही आज के दौर की लड़कियां भी यह चाहती है कि लड़के की जॉब भी उसी शहर में हो जहां उसकी जॉब है ताकि दोनों उसी शहर में मकान लेकर पारिवारिक जिम्मेदारियों से दूर स्वच्छंद एवं उन्मुक्त जीवन जी सके। इस सोच के पीछे लड़की के माता पिता भी उतने ही उत्तरदायी है क्या ऐसे लोग बहु भी ऐसी लाना चाहेंगे जो उनके साथ रहना नही चाहती होगी।
आखिर हमारा समाज किस और जा रहा है। हम संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों की तरफ अग्रसर हुए जा रहे है, अब बस हम दो हमारे दो तक ही सोच सीमित हो गई है जिसमे माता पिता का भी स्थान नही!
भविष्य में यह सामाजिक समस्या और भी गंभीर रूप धारण करने वाली है। समय रहते इस पर विचार नहीं किया गया तो राम जाने आगे परिवार का क्या स्वरूप देखने को मिले।
🙏