junjariya Omprakash kalvi

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junjariya Omprakash kalvi Omprakash junjariya हिरणी ढाणी

24/05/2024

सोने के शौक में बर्बाद होते परिवार....

जी हां सोना भाव में आम आदमी की पहुंच से बहुत दूर होता जा रहा है, लेकिन इसके प्रति जो मोह है वह कई परिवारों को लेकर डूब रहा है, खासकर हमारे समाज में तो यह बहुत ही ज्यादा बीमारी है, लड़के की शादी हो तो पूरी राशि का 70% सिर्फ सोने में चला जाता है और अधिकतर मामलों में मजे की बात यह है कि लड़का जिस लड़की से शादी करने जाएगा वह लड़की भी बोलेगी कि मेरे लिए सोना तो इतना आना ही चाहिए यदि नहीं बोलेगी तो लाने के लिए मना भी नहीं करेगी सत्य है(इस सच से दूर कि कर्ज उसके हिस्से में भी आयेगा),
हालांकि इसमें संपन्न परिवार ज्यादा नहीं पिस रहे और वो ज्यादा सोना करवाने की बजाय इन्वेस्टमेंट में विश्वास रखते हैं, लेकिन प्यारे मध्यम परिवारों की कमर टूट रही है, यूं कहे लोग दिखावटी या लड़की-लड़के की डिमांड जो भी हो सोने का शौक परिवारों को बर्बाद कर रहा है, आज समाज को पहल की जरूरत है कि शादी ब्याह में 5-6 तोला जो जरूरी हो इतना सोना काफी होना चाहिए, बाकी 20 से 40 तोला सोना करवा लेते हैं अगले 5 साल तक उस राशि का ब्याज भरते हैं और 10 साल में वह कर्ज चुकता होता है, क्योंकि ये आंखों देखा हाल है भाई... शादी के बाद अक्सर अधिकतर लड़के यही कहते हुए नजर आते है कि हनीमून की जगह अब बाहर कमाने जाना पड़ेगा,,, एक बार लगा खर्चा तो वसूल करूं, यह खर्चा 70% सोने का ही होता है जो सोना साल में एक दिन मुश्किल से काम आता है, यह चीज लड़के और उसके परिवार और खास तौर पर लड़की को ही समझना होगा कि जितना गहना लेकर आ रहा है अगला परिवार...यदि संपन्न नहीं है तो वह कर्ज कहीं ना कहीं आगे उसी के ही हो रहा है, हालांकि अधिकतर मेरी बातें आपको इसमें सही नहीं लगे शायद लेकिन मैंने अपने खुद के विचार बताएं जो सच है, सोने में डूब रहे परिवारों की कहानी बताइए है,

युवा शिक्षित वर्ग का यह फर्ज बनता है कि वह इस शौक और परिपाटी को बदलें...नॉर्मल ज्वेलरी के साथ शादी करने का प्रयास करें और करवायें (यदि आपके पास खुद का पैसा है तो बात अलग है यह बातें कर्ज लेकर सोना करवाने वाले परिवारों के लिए बोल रहे हैं क्योंकि फिर शादी के बाद पीछे मुड़ के देखते हैं तो लगता है राशि का आधे से ज्यादा हिस्सा सोने में चला गया, आज के समय में लोगों के बड़े-बड़े महल बनाकर जब खुद के घर में पैसे की कमी आती है वहां सिर्फ लड़ाई झगड़े की नजर आते है, कुछ साथी बोलेंगे कई परिवार बिना पैसे के भी खुश रह लेते हैं,,, हो सकता हैं वह अपवाद हो जो कम आवश्यकता पूर्ति में भी अपने आप को खुश रखने की मिसाल पेश करते हैं)🫂🙏
नोट- कई बोलते हैं सोना एक स्थाई पूंजी है जो भविष्य में कभी भी काम आ सकती हो तो भाई अभी कर्ज में डूब कर हाड़तोड़ कर लोगों को ब्याज भर कर रखी गई स्थाई पूंजी क्या काम की 😒🙏

अब तो मान लो.. देश सुरक्षित हाथों में है 😁😝70 सालों में पहली बार  #हेलीकॉप्टर चोरी हुआ है..! 🤣🤣।।
18/05/2024

अब तो मान लो.. देश सुरक्षित हाथों में है 😁😝
70 सालों में पहली बार #हेलीकॉप्टर चोरी हुआ है..!
🤣🤣।।

04/05/2024

हारा हुआ जुआरी आखिरी दाव मंगलसूत्र पर ही लगाता हैं।

01/05/2024

किसी महिला ने उसको "मौत का सौदागर" ऐसे ही नहीं बोला था। वो मौत बांट चुका है! भूक्तो 🤔

07/08/2023

राम लक्षमण भरत शत्रुघ्न उनकी माताओं के द्वारा खीर खाने से पैदा हुए।

राजा जनक का एक नग्न स्त्री को देखकर वीर्य टपक गया जो धरती में गिरा अगले दिन सीता एक बलीहारे के खेत में पायी गयी।

हनुमान के पसीने से एक मादा मगरमच्छ pregnant हो गयी और उसने मकरध्वज को जन्म दिया।

पवन ने हनुमान की माता अंजनी को गर्भवती किया हनुमान हवा में पैदा हो गए यानि बैटिंग किसी और की छक्का कोई और मार गया।

कमल से ब्रह्मा पैदा हुए
फिर ब्रह्मा ने अपनी पार्शव ( पसलिया ) रगड़ी तो दाई पसलियों से विष्णु और बाई से शिव पैदा किया
इसी कड़ी में शिव ने अपने माथे का पसीना पोछकर जमीन की तरफ झटका तो विष्णु और अपनी जाँघ रगड़ी तो ब्रह्मा पैदा हुए।

पता नहीं किसने किसको पैदा किया, और ब्राह्मण क्या साबित करना चाहते है।
पार्वती ने मिट्टी से गणेश की निर्माण किया।
विष्णु की नाक से सूअर का जन्म हुआ।
पांडवो की माता जंगल में गयी तो पाँच पांडवो का जन्म हुआ।

असुरो के अतिक्रमण की वजह से त्रिदेवो ब्रह्मा विष्णु महेश की भौंहें तन गयी और तीनो देवो के मुख से एक तेज निकला जो एक हो गया और वैष्णवी (दुर्गा ) का जन्म हुआ ???

" "जागो बहुजन जागो" जिन पाखंडियों की पाखंडी व्यवस्था ने तुम्हें सदियों तक जानवर बना रखा,
धिक्कार है तुम पर अगर ऐसी गंदी व्यवस्था को आज भी मान रहे हो तो।

रावण का ही दहन क्यों?
• इन्द्रदेव ने ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ बलात्कार किया, उसका दहन क्यों नही?
• राजा पांडु ने माधुरी के साथ बलात्कार किया, उसका दहन क्यों नही?

• ऋषि पाराशर ने केवट की लडकी सत्यवती के साथ बलात्कार किया, उसका दहन क्यों नही?
• वृहस्पति की पत्नी तारा का वनमंत्री चन्द्र ने अपहरण करके बलात्कार किया, उसका दहन क्यों नही?

• ब्रह्मा ने अपनी पुत्री वाच के साथ जबरदस्ती सहवास किया, उसका दहन क्यों नही?
• राजा नरक की रानियों के साथ कृष्ण ने जबरदस्ती विवाह रचाया, उसका दहन क्यों नही?

• कृष्ण ने अपने मामा अनय की पत्नी के साथ खुल्लम-खुल्ला अवैध सम्बन्ध बनाये, उसका दहन क्यों नही?
• भीष्म ने अम्बा, अम्बिका एवं अम्बालिका का अपहरण किया, तो उसका दहन क्यों नही?

• राम के पूर्वज राजा दण्ड ने शुक्राचार्य की पुत्री अरजा के साथ बलात्कार किया, उसका दहन क्यों नही?
• वायु देवता ने राजर्षि कुशनाभ की कन्याओं के साथ बलात्कार करने की कौशिश की ,उसका दहन क्यों नही?
आज_बलात्कार इसीलिए तो नही रुक रहा.

10/05/2023

चौधरी कुम्भाराम आर्य जयंती विशेष...

अंग्रेजी काल मे गुलामी व शोषण की एक श्रृंखला होती थी।अंग्रेजों के गुलाम देशी राजा और देशी राजाओं के गुलाम जागीरदार/सामंत।अंत मे सामंतों के गुलाम किसान-कामगार।शोषण की इस श्रृंखला में सबसे निचले पायदान वाला पिसता है क्योंकि ऊपर वाले सारे परजीवी बनकर मेहनतकशों की पूंजी लूटते है।

10मई 1914 को पटियाला में भेराराम सूंडा व माता जीवनी के घर बालक का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया "कुरड़ा"जो आगे चलकर चौधरी कुम्भाराम आर्य नाम से प्रसिद्ध हुआ।मूलतः सीकर जिले के रहने वाले सुंडा परिवार का पलायन पटियाला से होता हुआ बीकानेर रियासत में हो गया और चौधरी कुम्भाराम आर्य के संघर्षों की कर्मस्थली बन गया।

संयुक्त पंजाब में चौधरी छोटूराम की प्रेरणा से शिक्षा का प्रचार-प्रसार चल रहा था।माँ जीवणी ने उसका दाखिला स्कूल में करवा दिया।स्कूल में अध्यापक की कलम से बालक "कुरड़ा" कुम्भाराम बन गया और जो ताने पड़ौस की महिला देती थी कि कौनसा थानेदार बना देगी तो संयोग से आगे जाकर कुम्भाराम थानेदार ही बना।

कुम्भाराम जाट से कुम्भाराम आर्य

एक बार कुम्भाराम अपने सहपाठी जयपाल शर्मा के साथ स्कूल से उनके घर चले गए।प्यासे कुम्भाराम ने मटके से पानी पी लिया।उसको देखकर जयपाल की माँ आग बबूला हो गई और कहा "तुम अछूत जाट ने मटकी के कैसे हाथ लगा दिया,अब यह बेकार हो गई,इसके पैसे कौन देगा?"कुम्भाराम ने यह सवाल माँ के सामने रखा मगर संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई।एक तरफ जागीरदारों द्वारा अमानवीय शोषण व दूसरी तरफ सामाजिक भेदभावों की ऊंची दीवारों से कुम्भाराम आजिज आ चुके थे।मन मे बगावत की चिंगारी उठ चुकी थी।इसी बीच गांव में आर्य समाजियों का कार्यक्रम हुआ और यह बात सामने रखी गई कि यहां भेदभाव नहीं किया जाता तो कुम्भाराम जाट से कुम्भाराम आर्य बन गए।

पांचवी परीक्षा में प्रथम आने के बाद भी पिताजी का देहांत होने के कारण कुम्भाराम को पढ़ाई छोड़नी पड़ी।कम उम्र में वन विभाग में नौकरी लगी मगर बाद में कम उम्र के बालक से नौकरी न करवाने का अध्यादेश पारित हुआ तो नौकरी चली गई।दुबारा पुलिस विभाग में क्लर्क से लेकर थानेदार तक का सफर तय किया और पुलिस विभाग में नौकरी करते हुए सामंतो/जागीरदारों के अत्याचारों को सहन नही कर पाएं और नौकरी के साथ-साथ आजादी के आंदोलन कार्यक्रमों में शामिल होने लगे।

अपनी होशियारी व वाकपटुता के कारण चौधरी कुम्भाराम धीरे-धीरे किसान कामगारों की आवाज बनकर उभरने लगे।रियासती विभाग व कुम्भाराम की कार्यशैली के बीच धीरे-धीरे टकराव होने लगा!बीकानेर पुलिस आयुक्त कार्यालय से 1946 में नोटिस निकला- "कुंभाराम नाम का मुजरिम फरार है, उसे जो भी शख्स पकड़वायेगा उसको ₹100 का इनाम दिया जाएगा। मुजरिम का रंग कन्दूम, गोल चेहरा, हट्टा-कट्टा, लंबाई 5 फुट 7 इंच तथा बाएं हाथ पर कुंभाराम नाम खुदा है।"ईमानदारी व कर्तव्यपरायणता का बीकानेर की रियासती पुलिस ने यह इनाम दिया था मगर जनता ने कुम्भाराम को अपनी पलकों पर बैठाया और थानेदार कुम्भाराम से अब किसान मसीहा कुम्भाराम बनने की स्वच्छंद उड़ान की शुरुआत हो गई।

कुम्भाराम के सम्मान में पहली ही सभा ललाना गांव में हुई जिसमें सैंकड़ों किसान एकत्रित हुए।रियासत के कान खड़े हो गए मगर तुरंत कुम्भाराम ने अगली सभा प्रजा परिषद के बैनर तले ललाना गांव में करने की घोषणा कर दी।तिलमिलाए सामंतों ने रोकने की कोशिश की मगर कुम्भाराम की बगावत व हौंसले को वो कहाँ रोक पाते!कुम्भाराम ने मंच से चुनौती देते हुए कहा "गुंडों ने वहीं पर रामजस को मारने की धमकी दी तो कुंभाराम मंच पर खड़े होकर दहाड़े, "अरे ओ जागीरदार के वफादारो! सबसे पहले मेरे सीने पर गोली मारो!एक समय आएगा जब हम कुआं खोदेंगे तो पानी मिलेगा लेकिन जागीरदारों के निशान कहीं ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे!"

यहीं से कुम्भाराम चौधरी कुम्भाराम आर्य बने और किसानों-कामगारों के नेता बन गए।रियासत से निकाला, गिरफ्तारी,जेल,जमानत आदि दिनचर्या का हिस्सा बन गए मगर बगावत की चिंगारी भारी राजस्थान को दिशा देने लग गई।बाद में प्रजा परिषद की बढ़ती ताकत को ताकत हुए बीकानेर रियासत ने मंत्रिमंडल का गठन किया और चौधरी कुम्भाराम को राजस्व मंत्री बनाया गया।26जनवरी 1947 को कुम्भाराम ने आदेश पारित किया और किसानों को कुओं,तालाब,जोहड़ आदि पर कब्जा दे दिया और जागीरदारों द्वारा ली जाने वाली भेंट, बेगार, लालबाग और बांटा पर लगाम लगा दिया।लाज़िम था षड्यंत्र होगा और हुआ भी ऐसा ही।मतभेद उभरे और प्रजा परिषद मंत्रिमंडल से अलग हो गई।

30 मार्च 1949 को बीकानेर का राजस्थान में विलय कर दिया और कुम्भाराम आर्य अंतरिम सरकार में गृहमंत्री तो बलदेवराम जी मिर्धा राजस्व मंत्री बने।एक राजस्व विभाग के माध्यम से किसान हितैषी कानूनी बनाता तो दूसरा सामंतों व डाकुओं के गठजोड़ को तोड़ता रहा।कुम्भाराम जी अक्सर कहते थे "जमीन किंकी, बाव जिंकी!"और मारवाड़ में एक नारा चलता था "बलदेवो राजकुमार भोमली(जमीन)जाटों की!"

यह कुम्भाराम जी की दूरदर्शिता का ही कमाल था कि जागीरदारों की लूट पर रोक लगाने के लिए "राजस्थान उपज लगान नियमन अधिनियम" जून 1951 ई. में पास करवा लिया और प्रथम आम चुनाव से पूर्व ही "राजस्थान भूमिसुधार और जागीर पुनर्ग्रहण अधिनियम 1952" पास करवाया और बिना एक रुपया दिए किसानों को जमीनों का मालिक बनवा दिया।1952 के आम चुनावों में जहां प्रजा परिषद के जयनारायण व्यास जैसे बड़े नेता सामंतों से कड़ी टक्कर में हार गए वहां चौधरी कुम्भाराम बड़े भारी अंतर से विजयी हुए थे।

बाद में चौधरी कुम्भाराम के कई नेताओं के साथ मतभेद हुए मगर किसानों के हितों व खुद के स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया।आगे कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो पंचायती राज संघ के निर्माण में लग गए जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष जयप्रकाश नारायण व कुम्भाराम जी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने।इसी के दबाव में आकर पंडित नेहरू ने नागौर से पंचायती राज की स्थापना की थी।वर्तमान सरपंचों-प्रधानों के कार्यालय में एक तस्वीर चौधरी कुम्भाराम आर्य की अनिवार्य होनी चाहिए।

चौधरी कुम्भाराम ने गरीब किसान परिवार में खेती से लेकर केंद्र तक की राजनीति में दखल रखा और राजस्थान में मुख्यमंत्री मेकर के रूप में प्रसिद्ध हुए थे।चौधरी कुम्भाराम ने अपना पूरा जीवन किसान-कामगारों के लिए समर्पित किया।26अक्टूबर 1995 में जब इस माटी के सपूत ने दुनियाँ को अलविदा कहा उस समय किसान-कामगार उस अवस्था मे पहुंच चुके थे कि खुद अपने बूते अपने भाग्य का फैसला कर सके।

आज बड़ी मायूसी होती है कि जिस मृत्युभोज, सामाजिक भेदभाव जैसी कुरीतियों से कुम्भाराम जी जूझ रहे थे वो कम तो हुई मगर उस मिशन को हम अंजाम तक नहीं पहुंचा पाएं।दिल मे बड़ा दर्द होता जब चौधरी कुम्भाराम आर्य की किताब "वर्ग चेतना"पढ़ता हूँ तो!जिस महापुरुष ने हमे भविष्य की दिशा बताने के लिए जो किताब लिखी थी उसको पढ़ना तो दूर खुद कुम्भाराम जी को ही हम वो सम्मान नहीं दे पाएं जिसके वो असली हकदार थे।आज हमारे युवाओं में अपने बाप को बाप न कहकर दूसरों के बाप को बाप कहने की जो होड़ मची हुई है वो देखकर मन द्रवित हो जाता है।

निकले थे बड़ा कारवां लेकर मंजिल को
सेनापति गुजरा और काफिला बिखर गया!
साभार
प्रेमसिंह सियाग

09/05/2023

ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्र को समर्पित दो लाइन
कर्ज़ करके महंगी शादी और चमकदार प्रोग्राम करने से आपको कोई सर्टिफ़िकेट नहीं मिलेगा तुम मिडल क्लास से हो और ये समझ लो एक दिन के लिये 20 गाड़ी किराये कर लेने से कोई तुमको अंबानी नहीं समझने वाला उस दूल्हे को कई सालों तक खच्चर बनना पड़ेगा जो कल शेरवानी पहन के एक दिन का नक़ली शहंशाह बना हुआ था विवाह को आसान बनाओ दिखावे से दूर रहो
🙏

टीपू सुल्तान और  उनका सपनाटीपू सुलतान ने अपने सपनों और उन सपनों की व्याख्या करते हुए एक किताब लिखी थी. इसमें कुल 37 सपनो...
09/05/2023

टीपू सुल्तान और उनका सपना

टीपू सुलतान ने अपने सपनों और उन सपनों की व्याख्या करते हुए एक किताब लिखी थी.

इसमें कुल 37 सपनों और उसकी व्याख्या का वर्णन है.

बाद में इसी किताब पर गिरीश कर्नाड ने एक नाटक भी लिखा-'टीपू सुल्तान का सपना'.

अंग्रेजों को पूरी तरह से भारत से निकाल बाहर करना, और भारत को आत्मनिर्भर बनाना टीपू सुल्तान के सपनों का स्थाई भाव था.

बहुतों के अनुसार टीपू सुलतान का यह सपना 1947 में पूरा हो गया.

लेकिन देश में ऐसे लोग भी है, जिनका मानना है कि टीपू सुलतान का वो सपना अभी पूरा नहीं हुआ है. अभी भी भारत नए तरीके से अंग्रेजों (साम्राज्यवादियों) का गुलाम बना हुआ है.

भारत को आत्मनिर्भर बनाने का काम अभी बाकी है.

पिछले साल टीपू सुल्तान के सपनों से आतंकित कर्नाटक की भाजपा सरकार ने टीपू सुलतान को पाठ्यक्रम से बाहर निकाल दिया था

और टीपू सुलतान को मुस्लिम कट्टरपंथी और हिन्दुओं का कत्लेआम करने वाला बताकर 'टीपू सुलतान' पर उसी तरह हमला शुरू कर दिया है, जैसे उस वक़्त अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को बदनाम करने और हिन्दू मुस्लिम बंटवारा करने की नीयत से उस पर हमला बोला था.

मजेदार बात यह है कि टीपू सुल्तान के खिलाफ उस वक़्त के अंग्रेजों और आज के भाजपा की शब्दावली भी हूबहू एक जैसी है.

कर्नाटक में व अन्य जगहों पर एक एक करके टीपू सुल्तान का नाम मिटाया जा रहा है.

मानो नाम मिटाने से उनका सपना भी मिट जाएगा.

टीपू सुल्तान के इतिहास में योगदान पर जाने से पहले आइये देखते हैं कि भाजपा के चहेते अबुल कलाम टीपू सुलतान के बारे में क्या कहते हैं-
''नासा में लगी एक पेंटिंग ने मेरा ध्यान आकर्षित किया, क्योंकि पेंटिंग में जो सैनिक रॉकेट दाग रहे थे वे गोरे नहीं थे, बल्कि दक्षिण एशिया के लग रहे थे.

तब मुझे पता चला कि यह टीपू सुलतान की सेना है, जो अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ रही है.

पेंटिंग में जो तथ्य दिखाया गया है, उसे टीपू के देश में ही भुला दिया गया है,

लेकिन सात समुंदर पार यहाँ इसका जश्न मनाया जा रहा है.'' [The Wings of Fire]

दरअसल टीपू सुलतान वह पहला व्यक्ति था जिसने रॉकेट-मिसाइल के लिए 'मेटल' का इस्तेमाल किया था.

उस वक़्त रॉकेट-मिसाइल के लिए बांस के बम्बू का इस्तेमाल किया जाता था.

'मेटल' के इस्तेमाल से रॉकेट-मिसाइल की रेंज करीब 2 किमी तक हो गयी थी.

1780 में हुए अंग्रेज-मैसूर युद्ध में इसी रॉकेट के कारण अंग्रेजों की बुरी तरह हार हुई थी.

कहते है कि बाद में इसी रॉकेट टेक्नोलॉजी को अपनाकर और इसे और विकसित करके अंग्रेजों ने वाटरलू की निर्णायक लड़ाई (1815) में नेपोलियन को हराया था.

भारत की अपनी एक महत्वपूर्ण तकनीक अंग्रेजों के हाथ में चली गयी, क्योकि तब पेटेंट क़ानून लागू नहीं था.

टीपू सुलतान के मरने के बाद उसके किले से अंग्रेजों को 700 से ज्यादा रॉकेट-मिसाइल मिले.

DRDO [Defence Research and Development Organisation] के शिवथानु पिल्लई [Sivathanu Pillai] ने तमाम शोध के बाद माना कि रॉकेट-मिसाइल टेक्नोलॉजी की जन्मस्थली टीपू का मैसूर राज्य ही है.

उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति अबुल कलाम से मांग की कि सेमीनार व अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से इस बात को देश के सामने स्थापित किया जाय.

कर्नाटक के 'साकेत राजन' ने 1998 और 2004 में क्रमशः दो भागों में 'पीपल्स हिस्ट्री ऑफ़ कर्नाटक' लिखी थी, जिसे आज कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है.

इस किताब की गौरी लंकेश सहित तमाम बुद्धिजीवियों ने भूरी भूरी तारीफ़ की है.

इस किताब में साकेत राजन ने तथ्यों के साथ साबित किया है कि हैदर अली और टीपू सुलतान विशेषकर टीपू सुलतान ने किस तरह अपने राज्य में तमाम राजनीतिक-सामाजिक-आर्थिक सुधारों के माध्यम से एक स्वस्थ और ऐतिहासिक रूप से प्रगतिशील पूंजीवाद की नींव रखने का प्रयास किया था,

जिसे बाद में अंग्रेज़ उपनिवेशवादियों के साथ मिलकर उच्च जाति की सामंती ताकतों ने कुचल दिया और भारत में अर्ध सामंती-अर्ध औपनिवेशिक उत्पादन संबंधों की नीव पड़ी,

जिसकी सड़ांध आज 200 साल बाद भी जीवन के प्रत्येक पहलू में रची बसी है.

टीपू सुलतान ने जब केरल के मालाबार क्षेत्र को अपने राज्य में मिलाया तो उस वक़्त वहां पर निचली जाति की गरीब महिलाओं को अपना स्तन ढकने की आज़ादी नहीं थी.

और इसे ढकने के लिए उनसे टैक्स माँगा जाता था, जिसे 'स्तन टैक्स' कहते थे.

टीपू सुलतान ने एक ही झटके में इस प्रथा पर प्रतिबन्ध लगा दिया.

टीपू सुलतान भूमि-सुधार करने वाला शायद पहला आधुनिक राजा था.

टीपू ने जो जमीन जोतता था, उसे ही जमीन का मालिक बनाया और लगान के लिए सीधे राज्य के साथ उनका रिश्ता कायम कर दिया.

जमींदारों (palegars) का प्रभुत्व समाप्त कर दिया गया.

गरीबों-दलितों को बड़े पैमाने पर ज़मीन बाटी गयी.

उस समय के 'भूमि-रिकॉर्ड' आज भी इसकी गवाही देते है. टीपू सुलतान के समय कुल 40 प्रतिशत ज़मीन सिंचित थी.

बंधुवा मजदूरी और किसी भी तरह की गुलामी प्रथा पर उसने पूर्ण पाबन्दी लगा दी.

जमींदारों का प्रभाव ख़त्म होने और केंद्रीकृत राज्य मशीनरी के अस्तित्व में आने के कारण व्यापारिक-पूंजीवाद तेजी से फ़ैलने लगा.

अंग्रेजी सामानों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया.

इससे राजस्थान के मारवाड़ी, गुजरात के बनिया और गोवा कर्नाटक की सारस्वत ब्राह्मण जैसी जातियां टीपू सुलतान से नाराज़ हो गयी,

क्योंकि यही जातियां अंग्रेजी सामानों के व्यापार में लगीं थी.

फलस्वरूप इन्होंने ही अंग्रेजों के साथ मिलकर टीपू सुलतान के खिलाफ षड्यंत्र को अंजाम दिया.

इस सुधार के फलस्वरूप वहां की शूद्र जाति 'बानिजगा' [Banijaga] व्यापार में आगे बढ़ पाई और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ाई में यह व्यापारी जाति पूरी तरह टीपू सुलतान के साथ खड़ी थी.

यदि टीपू सुल्तान नहीं हारता तो यह जाति/वर्ग भावी राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग के रूप में निश्चित तौर पर उभरता.

टीपू सुल्तान के इसी तरह के सुधारों के कारण उच्च प्रतिक्रियावादी जातियां टीपू सुलतान से नाराज़ हो गयी और अंग्रेजों से जा मिली.

टीपू सुल्तान के हारने का यह भी एक कारण बना.

दरअसल टीपू सुलतान के समय राज्य ही सबसे बड़े 'पूँजीपति' के रूप में उभर कर सामने आया और टीपू सुलतान के प्रयासों से सिल्क, सूती कपड़ा, लौह, स्टील चीनी आदि का उत्पादन श्रम विभाजन और मजदूर आधारित यानी पूंजीवादी तरीके से हो रहा था.

नहर, सड़क आदि का काम बड़े पैमाने पर राज्य ने अपने हाथ में लिया हुआ था और शुद्ध मजदूरी देकर लोगों से काम करवाया गया.

कारीगरों और किसानों को अनेक तरह से राज्य ने मदद की.

इसके अलावा हथियार बनाने के भी समृद्ध उद्योग थे.

डबल बैरेल पिस्टल टीपू सुलतान के समय की ही देन थी.

इस वक़्त लगभग 21 प्रतिशत जनसँख्या शहरी थी.

जो पूंजीवादी नगरीकरण का संकेत है.

टीपू सुलतान ने अपने राज्य में पूर्ण शराब बंदी कर रखी थी.

जनता की बेहतरी के प्रति टीपू की प्रतिबद्धता टीपू के इस पत्र में दिखती है जो उसने अपने एक अधिकारी मीर सदक [Mir Sadaq] को 1787 में लिखा था-''पूर्ण शराबबंदी मेरी दिली इच्छा है.

यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है.

हमे अपनी जनता की आर्थिक खुशहाली और उसकी नैतिक उचाई के बारे में सोचना चाहिए.

हमे युवाओं के चरित्र का निर्माण करने की जरूरत है.

मुझे तात्कालिक वित्तीय नुकसान के बारे में पता है.

लेकिन हमे आगे देखना है.

हमारे राजस्व को हुआ नुकसान जनता की शारीरिक और नैतिक खुशहाली से बड़ा नहीं है.''

फ्रांसीसी क्रांति का भी टीपू सुल्तान पर काफ़ी असर था.

इसके पहले उसने 'रूसो', 'वाल्टेयर' जैसे लोगों को भी पढ़ रखा था.

कहते हैं कि उसने फ्रांसीसी क्रांति की याद में एक पौधा भी लगाया था.

साकेत राजन तो अपनी उपरोक्त किताब में यहां तक दावा करते हैं कि उस वक़्त मैसूर राज्य में एक 'जकोबिन क्लब' ('जैकोबिन' फ्रेंच क्रांतिकारियों को बोलते थे) भी हुआ करता था.

टीपू सुल्तान भी इस क्लब का सदस्य था.

फ्रेंच सरकार को लिखे पत्र में टीपू सुल्तान अपने को टीपू सुल्तान 'सिटीजन' के रूप में दस्तखत करते हैं.

टीपू सुल्तान आयुर्वेद-यूनानी और एलोपैथी को मिलाकर एक चिकित्सा पद्धति विकसित करने का प्रयास कर रहा था.

सर्जरी में भी उसकी रुचि थी.

टीपू को हराने के बाद श्रीरंगपट्टनम मे अंग्रेजों को एक अत्याधुनिक (उस समय के हिसाब से) अस्पताल मिला था, जिसे देखकर वो दंग रह गए थे.

टीपू सुल्तान के समकालीनों ने साफ साफ लिखा है कि टीपू सुल्तान सामंती शानो-शौकत से कोसो दूर था और बहुत सादा जीवन गुज़ारता था.

टीपू सुल्तान का यह पहलू उन सब को दिखाई देता है जो इतिहास का सिंहावलोकन करते हैं।

लेकिन इतिहास का मुर्गावलोकन करने वालों को सिर्फ यह दिखाई देता है कि टीपू सुल्तान एक मुस्लिम था, इसलिए कट्टर था और इसलिए हिन्दू-विरोधी था.

'पीपुल्स हिस्ट्री ऑफ कर्नाटक' में टीपू पर विस्तार से लिखने के बाद साकेत राजन निष्कर्ष रूप में टीपू सुल्तान पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हैं-

''वह पहला और दुर्भाग्य से अंतिम व्यक्ति था जिसे उभरते भारतीय बुर्जुवाजी ने प्रस्तुत किया था.

यूरोपीय रेनेसां की भावना का वह एक चमकीला उदाहरण था.''

क्या है सांडे के तेल की हकीकत...आठवीं पास करके जब इंटर कॉलेज में एडमीशन हुआ। तो एकदम नई दुनिया खुल गई। साइकिल से लगभग चा...
09/05/2023

क्या है सांडे के तेल की हकीकत...

आठवीं पास करके जब इंटर कॉलेज में एडमीशन हुआ। तो एकदम नई दुनिया खुल गई। साइकिल से लगभग चार किलोमीटर दूर स्थित इंटर कॉलेज जाने लगा। रास्ते में तमाम दुनिया के नजारे इंतजार करते बैठे रहते। ऐसी एक स्मृति सड़क के किनारे लगे मजमे की भी है। इसमें एक आदमी कई सारी बड़ी छिपकलियों को एक दरी पर बिछाकर और उनमें से कुछ को बर्तन में भूनते हुए दिखता। इसे ही वो सांडे का तेल कहता।
इस सांडे के तेल की तमाम महिमा का बखान करके वह बेचता। उसकी जुबान बंद नहीं होती। वो लगातार बोलता रहता और तेल से भरी हुई शीशी को बेचता भी रहता। बाद में कभी जब उस सांडे की असली कहानी के बारे में पता चला तो मन जाने कितनी वितृष्णाओं से भर गया। आप भी जानिए सांडे के बारे में। नीचे लिखे शब्द, पंक्तियां और जानकारी सभी कुछ वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट अरविंद यादव के हैं। उनसे साभार लेकर आपके साथ साझा कर रहा हूं।------

आइए आज बात करते हैं एक एसे सुन्दर, शान्त, विषहीन, निरीह, किसान हितैषी और क्षतिशून्य प्राणी की जो बलि चढ़ गया मनुष्यों की कामोत्तेजना बढ़ाने की अंतहीन लालसा की।
यह जीव है साण्डा। नाम भ्रमित करता है परन्तु यह एक मध्यम आकार की छिपकली है जो थार मरुस्थल में पाई जाती है।
Indian Spiny Tailed Lizard or Saraa hardwickii. गोल मुंह, चपटी थूथन, मटमैला भूरा रंग, पीठ पर काले धब्बे, झुर्रीदार खाल और हल्के नीले बैंगनी रंग की कांटेदार पूंछ इस शर्मीले सरीसृप को एक डरावना रुप देते हैं। दरअसल यह एक ठण्डे लहू का प्राणी है जो सर्दियों में 4 महीने जमीन के नीचे शीत-निद्रा में रहती है।
इसी शीत-निद्रा के लिए साण्डा अपनी पूंछ में चर्बी जमा कर लेता है और यही चर्बी इस की मौत का कारण है। न तो ईश्वर ने इसे विष ग्रन्थि दी है और न ही विष दन्त। अरे इस बेचारे के मुंह में तो दांत भी नहीं हैं। और तो और यह छिपकली भारत की अकेली शाकाहारी है जो पत्ते खाती है।
कभी कन्नौज (उत्तर प्रदेश) से ले कर संपूर्ण थार मरुस्थल, पाकिस्तान और कच्छ के रण तक इस का विस्तार था परन्तु अंधाधुंध शिकार ने इसे पश्चिमी थार तक सीमित कर दिया है। पाकिस्तान में तो लगभग समाप्त ही हो गई। पोखरण और महाजन में फैले सेना की चांदमारी के इलाके में ही फल फूल रही है।
गरीब के लिए पेट की भूख मिटाने को मांस और अमीर के लिए वासना की आग बुझाने को कामोत्तेजक तेल और वो भी एक आसान शिकार से - लुप्त होने का सही नुस्खा।
पहले अवैध शिकारी बिल में धुआं भर कर इन्हें आसानी से पकड़ लेते हैं। फिर पीठ पर डंडे से मार कर इस की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जाती है ताकि वह भाग न सके। 10-20 छिपकलियों को एक बोरे में भर कर सड़क के किनारे अपनी दुकान लगा लेते हैं। ग्राहक के आने पर इस अधमरे प्राणी को जिंदा ही सूखी और गर्म कड़ाही में डाल दिया जाता है जहां ये तड़प तड़प कर मर जाते हैं। पूंछ में जमा 5-10 ग्राम चर्बी पिघल जाती है जो शीशी में डाल कर बेची जाती है लिंग वर्धक और गुप्त रोगों की औषधि के नाम पर जब कि असल में यह दवाई है ही नहीं- इसमें होता है पॉली अन्सेच्युरेटेड फैटी एसिड। बचे हुए भुने मांस को या तो शिकारी खुद खा लेते हैं या उसे भी बेच देते हैं।
यह अद्भुत प्राणी मरुस्थल इलाके के नाजुक पारितंत्र (Ecosystem) में पहले से कमजोर आहार श्रृंखला और अति जटिल जीवन चक्र का एक मजबूत हिस्सा है। रेतीली वनस्पति के विस्तार के साथ साथ बहुत से मरूस्थलीय स्तनधारियों और प्रवासी शिकारी पक्षियों का यह अकेला आहार है।
आइए इस निरीह और लुप्तप्राय प्राणी को बचाने का प्रयास करें। मरुस्थल का पारितंत्र (Ecosystem) बहू मूल्य है। इसे भ्रान्तिपूर्ण कारणो से नष्ट न होने दें।

#जंगलकथा #जंगलमन

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