Indian Cow Urine & Dried Dung Cake

Indian Cow Urine & Dried Dung Cake Kanda - Dried Indian Cow Dung available for Export. Used as Burning Fuel. Reduced Pollution and keeps environment with Nuclear Radiation free.
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01/06/2023
"भारत में मवेशियों की आबादी पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा है। मवेशियों के गोबर, कृषि से निकले कचरे, आदि से बायोगैस बनाने की...
11/03/2023

"भारत में मवेशियों की आबादी पूरे विश्व में सबसे ज़्यादा है। मवेशियों के गोबर, कृषि से निकले कचरे, आदि से बायोगैस बनाने की दिशा में ‘GOBAR-Dhan’ योजना अहम् है। यह सिर्फ एक योजना नहीं, बल्कि गाँवों को स्वच्छ रखने, किसानों एवं पशुपालकों की आमदनी बढ़ाने और बायोगैस के माध्यम से waste to wealth और waste to energy पाने का सशक्त माध्यम है।"
गोवर्धन योजना - स्वच्छ भारत मिशन के तहत, इस वित्त वर्ष में भारत सरकार ने प्रति जिले को ५० लाख रुपया देने की घोषणा की गई है जो की कुल १०००० करोड़ रूपए होती है। जिसमे गोपालक और आम नागरिक, गोबर, कृषि अवशेष और अन्य मल को गैस में परिवर्तित करके ईंधन के लिए उपयोग किया जाता हैं और गोबर गैस स्लरी का उपयोग में किया जाता है। अगर आप इस योजना का लाभ लेना चाहते है तो निम्न फार्म को भरे तथा और व्यक्ति को भी अग्रेषित करे।
Under the Gobar-dhan Yojana - Swachh Bharat Mission, in this financial year the Government of India has announced to give 50 lakh rupees per district, which is a total of 10000 crore rupees for the country. In which gopalak and common citizens will be able to convert cow dung, agricultural residues and other excreta are converted into Bio gas and used for fuel and cow dung slurry is used for agriculture purpose. If you want to take advantage of this scheme, then fill the following form. Also forward it to other person in your connection.

This information is to collect number of cattles with you under Gobardhan Yojna. For enquiry you contact 79905 40893, 70143 88201 or email [email protected]. Visit https://sbm.gov.in/gbdw20/ for details of scheme. यह जानकारी गोबर्धन योजना के तह....

*क्यों चमत्कारी है भादवे का घी* भादवे के घी के लिए अति शीघ्र संपर्क करें। *नोट :-एडवांस बुकिंग पर ही भादवे का घी हमारे य...
30/07/2021

*क्यों चमत्कारी है भादवे का घी*
भादवे के घी के लिए अति शीघ्र संपर्क करें।
*नोट :-एडवांस बुकिंग पर ही भादवे का घी हमारे यहां से मिलेगा बिलोने का घी 9173605833, 07990540893*
(भाद्रपद माह का गोघृत)?मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है!
भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है।
इस वर्ष भाद्रपद माह 23अगस्त से 20 सितम्बर 2021 तक रहेगा
जिसे हम घास कहते हैं, वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ औषधियाँ हैं।
इनमें धामन जो कि गायों को अति प्रिय होता है, खेतों और मार्गों के किनारे उगा हुआ साफ सुथरा, ताकतवर चारा होता है।
सेवण एक और घास है जो गुच्छों के रूप में होता है। इसी प्रकार गंठिया भी एक ठोस खड़ है। मुरट, भूरट,बेकर, कण्टी, ग्रामणा, मखणी, कूरी, झेर्णीया,सनावड़ी, चिड़की का खेत, हाडे का खेत, लम्प, आदि वनस्पतियां इन दिनों पक कर लहलहाने लगती हैं।
यदि समय पर वर्षा हुई है तो पड़त भूमि पर रोहिणी नक्षत्र की तपत से संतृप्त उर्वरकों से ये घास ऐसे बढ़ती है मानो कोई विस्फोट हो रहा है।
इनमें विचरण करती गायें, पूंछ हिलाकर चरती रहती हैं। उनके सहारे सहारे सफेद बगुले भी इतराते हुए चलते हैं। यह बड़ा ही स्वर्गिक दृश्य होता है।
इन जड़ी बूटियों पर जब दो शुक्ल पक्ष गुजर जाते हैं तो चंद्रमा का अमृत इनमें समा जाता है। आश्चर्यजनक रूप से इनकी गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है।कम से कम 2 कोस चलकर, घूमते हुए गायें इन्हें चरकर, शाम को आकर बैठ जाती है।रात भर जुगाली करती हैं।अमृत रस को अपने दुग्ध में परिवर्तित करती हैं।यह दूध भी अत्यंत गुणकारी होता है।इससे बने दही को जब मथा जाता है तो पीलापन लिए नवनीत निकलता है।एकत्रित मक्खन को गर्म करके, घी बनाया जाता है।
इसे ही #भादवे_का_घी कहते हैं।
इसमें अतिशय पीलापन स्वणं रंग होता है। ढक्कन खोलते ही 100 मीटर दूर तक इसकी मादक सुगन्ध हवा में तैरने लगती है।
बस….मरे हुए को जिंदा करने के अतिरिक्त, यह सब कुछ कर सकता है!
विशेष: सभी गोघृत भोजन के रूप में सेवन हेतु 90 दिन के अंदर प्रयोग करें और उसके पश्चात जितना पुराना होगा इसकी महक बदलती रहेगी और उतनी ही तेज़ होती जाएगी।
एवं उत्तम औषधि के रूप में प्रयोग होगा परन्तु भोजन के रूप में सेवन हेतु प्रयोग नहीं होगा।
ज्यादा है तो खा लो, कम है तो नाक में चुपड़ लो।
हाथों में लगा है तो चेहरे पर मल दो।
बालों में लगा लो।
दूध में डालकर पी जाओ।
सब्जी या चूरमे के साथ जीम लो।
बुजुर्ग है तो घुटनों और तलुओं पर मालिश कर लो।
इसमें अलग से कुछ भी नहीं मिलाना।
सारी औषधियों का सर्वोत्तम सत्व तो आ गया!!
इस घी से हवन, देवपूजन और श्राद्ध करने से अखिल पर्यावरण, देवता और पितृ तृप्त हो जाते हैं।
कभी सारे मारवाड़ में इस घी की धाक थी।
इसका सेवन करने वाली विश्नोई महिला 5 वर्ष के उग्र सांड की पिछली टांग पकड़ लेती और वह चूं भी नहीं कर पाता था।
पुराने लोगो द्वारा वर्णित प्रत्यक्ष की घटना में एक व्यक्ति ने एक रुपये के सिक्के को मात्र उँगुली और अंगूठे से मोड़कर दोहरा कर दिया था!!
आधुनिक विज्ञान तो घी को वसा के रूप में परिभाषित करता है। उसे भैंस का घी भी वैसा ही नजर आता है।
वनस्पति घी, डालडा और चर्बी में भी अंतर नहीं पता उसे।
लेकिन पारखी लोग तो यह तक पता कर देते थे कि यह फलां गाय का घी है।
यही वह घी था जिसके कारण युवा जोड़े दिन भर कठोर परिश्रम करने के बाद, रात भर रतिक्रिया करने के बावजूद, बिलकुल नहीं थकते थे (वात्स्यायन)!
एक बकरे को आधा सेर घी पिलाने पर वह एक ही रात में 200 बकरियों को “हरी” कर देता था!!इसमें स्वर्ण की मात्रा इतनी रहती थी, जिससे सिर कटने पर भी धड़ लड़ते रहते थे!
बाड़मेर जिले के गूंगा गांव में घी की मंडी थी। वहाँ सारे मरुस्थल का अतिरिक्त घी बिकने आता था जिसके परिवहन का कार्य बाळदिये भाट करते थे।
वे अपने करपृष्ठ पर एक बूंद घी लगा कर सूंघ कर उसका परीक्षण कर दिया करते थे।
इसे घड़ों में या घोड़े के चर्म से बने विशाल मर्तबानों में इकट्ठा किया जाता था जिन्हें “दबी” कहते थे।
घी की गुणवत्ता तब और बढ़ जाती, यदि गाय पैदल चलते हुए स्वयं गौचर में चरती थी, तालाब का पानी पीती, जिसमें प्रचुर विटामिन डी होता है और मिट्टी के बर्तनों में बिलौना किया जाता हो।
अतः यह आवश्यक है की इस महीने के घृत को प्रतिदिन जंगल या गोचर में कम से कम 5 किलोमीटर तक चलने वाली गाय के दूध से वैदिक विधि से
या तो स्वयं घर पर बनाये या किसी विश्वासपात्र व्यक्ति से ही ले जिस से इसके गुणों का पूरा लाभ मिल सके और यदि इसे कई वर्षो तक संजो कर औषधि बनाना है तो इसका शुद्ध विधि और भादवे के महीने में बना होना और भी आवश्यक है।
यही कारण था की इस महीने के घी का गोपालको को अच्छा दाम मिलता था या कहे की यह महीना उनकी और उनकी गाय के दिवाली का महीना होता है जिसका वह साल भर राह देखते है।
वही गायें, वही भादवा और वही घास आज भी है। इस महान रहस्य को जानते हुए भी यदि यह व्यवस्था भंग हो गई तो किसे दोष दें।
जो इस अमृत का उपभोग कर रहे हैं वे निश्चय ही भाग्यशाली हैं। यदि घी शुद्ध है तो जिस किसी भी भाव से मिले, अवश्य ले लें। यदि भादवे का घी नहीं मिले तो गौमूत्र सेवन करें। वह भी गुणकारी है। और हमारे देश के कई ऋषि इस घी को कांच की बंडी या चीनी माटी की बंडी मैं भरकर 3 फुट जमीन में गाड़ देते थे और कई वर्षों बाद इसे निकालते थे और उससे कई दुर्लभ औषधियां बनती थी जिससे अनगिनत रोगों का नाश होता था कहीं टूटी हुई हड्डियां फिर से जुड़ जाती थी।
10 वर्ष बाद निकालें गए घी को पतला या जीरन कहा जाता था। भादवे के घृत से पंचगव्य घृत पंचगव्य नस्य बनाने से अधिक लाभ मिलता है भादवे के घृत के लिए अति शीघ्र संपर्क करें 9173605833, 7990540893

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