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10/04/2021

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम् ।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ १॥

गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ २॥

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम् ।
अनादिह्यपारं महामोहहारं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ३॥

वटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदासुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ४॥

गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्ध्यमानं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ५॥

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ६॥

शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ७॥

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ८॥

स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्रं समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥ ९॥

॥ इति शिवाष्टकम् ॥

16/01/2020
गुजरात के वड़ोदरा जिले के पादरा  तालुके में महिसागर नदी के किनारे एक रमणीय गाँव था 'डबका '| उस गाँव में एक गरीब बच्चा रहत...
17/07/2019

गुजरात के वड़ोदरा जिले के पादरा तालुके में महिसागर नदी के किनारे एक रमणीय गाँव था 'डबका '| उस गाँव में एक गरीब बच्चा रहता था, नाम था इंद्राजीत सिंह लेकिन घर वाले और आस पड़ोस के दोस्त उसे प्यार से इन्दु बुलाते थे І पिताजी एक कारखाने में दिहाड़ी मजदूर थे और माँ दूसरे के घरों में झाड़ू पोछा कर के अपने घर गुजर की जटिल प्रक्रिया में थोड़ा सहयोग करती थी। आठवीं में पढ़ने वाला इन्दु बहुत ही होनहार छात्र था और अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आ के अपने और अपने परिवार के लिए नए नए सपनो में कल्पनाओं के रंग भरता था।पढ़ने के लिए उसे १० कोस की पदयात्रा करनी पड़ती थी क्यूंकि उसके गाँव के विद्यालय में केवल पांचवी तक ही शिक्षा होती थी। महिसागर नदी के ऊपर पद सेतु से होते हुए, खेतों खलिहानों, बगीचो के बीच भ्रमण करतर हुए१० कोस की यात्रा कब एक सुखद प्रवास का अनुभव प्रदान कर देतीं की नन्हे नाजुक पावों में धसने वाले काँटों , खुत्तियों के चुभन भरे अहसासों का ख्याल ही न रहता। घर से निकलने पे माँ उसे रोज एक रूपये का सिक्का देती ताकि उसके पूत को किसी हाड़ गाढ़ परिस्थिति में किसी विपत्तयों का सामना पड़े पर अपने परिवार के तंगहाली से इन्दु भल्टीभाँति परिचित था इसलिए वह उन पैसों को व्यर्थकी लिपासाओं से छुपाकर अपने गुल्लक में सहेज देता था। दशहरे के त्यौहार आने वाले हैं और इन्दु ने अपने जोड़े पैसे से अपने टिपटिपाते फूस की छत की मरम्मत की सोची है पर उसके पास इतने अधिक पैसे भी न थे की उस व्यय के भुगतान भर से कोई उसकी छत मरम्मत होजाए। पर पैसे लगेंगे ही कितने ?? इन्दु ने सोचा।
बाँस और फूस के ही तो पैसे, कितना पैसा लेगा मुसहर ?
छत टिकाने के लिए तो गाँव वाले मदद करने तो आएंगे ही , पिताजी और मैं भी तो लोगों की मदद के लिए ७ कोस के फेरे में सारे गाँवों को नाप आएं हैं।
इन्दु आशाओं और निराशाओं के समुद्रमंथन में सुख और आशंकाओं का रस पी रहा था जो की समुद्रमंथन से निकले अमृत और विष के मिश्रण को आपस में घोंट कर बनाया गया था। विद्यालय जाते समय उसके मस्तिष्क में अनगिनत योजनाएं मूर्तरूप पाने को व्याकुल थीं।
महिसागर नदी के ऊपर रस्सी से बना सेतु बिलकुल जर्जर हालत में था और अपनी आखरी साँसे ले रहा था। उस सेतु गुजरते हुए इन्दु हमेशा सावधान हो जाता था क्यूंकि उसको तैरना नहीं आता था और किसी भी कीमत पर भी वह अपनी जान ऐसे व्यर्थ नहीं गँवा सकता था क्यूंकि उसको अपने माँ पिताजी के चेहरे पे एक मुस्कान का इंतज़ार था जो कि उसके छत की मरम्मत के बाद ही संभव था, बारिश के मौसम में उसने अपने माँ को पूरी रात बैठे पानी के बंद हो जाने की आस में टपकते छत को निहारते हुए देखा था।
बगीचे से निकलते हुए इन्दु अब महिसागर नदी के मुहाने पे खड़ा था।उसने सेतु के ऊपर चढ़ाई की। लोकगीत गुनगुनाते हुए इन्दु अपनी धुनमें मदमस्त गज की तरह नदी को चीरता हुवा आगे बढ़ रहा था। उस सेतु से एक समय में केवल एक ही व्यक्ति रास्ता तय कर सकता था पर यह क्या? सामने एक बूढी काकी सेतु पर चढ़ गयी, अभी ज्यादा रास्ता तय नहीं हुआ था इसलिए इन्दु ने बूढी काकी की झुकी कमर पर तरस खाकर अपने कदम पीछे खिंच लिए और सेतु से उतर कर काकी के रास्ता तय कर लेने का इंतज़ार करने लगा। विद्यालय के प्रार्थना का समय नजदीक ही है पर वह अभी तक महिसागर नदी को भी पार नहीं कर पाया था , बूढी काकी बूढी न हुयी उनकी चाल कछुए से भी धीमी हो गयी थी। कभी कभी उत्तेजित होकर वह तेज स्वर में काकी को जल्दी आने की पुकार करता कभी कभी अपने निपुण तैराकी के हुनर पर अफ़सोस।
ज्यू ज्यू काकी पास आती जा रही थी उनके शरीर के ढांचे से उनकी हड्डियां बाहर आती हुयी दृश्य होती थी। कमजोर, निस्तेज, झुर्रियों में समायी हुयी बूढी काकी मृत्युशैय्या पर थी उनकी आत्मा कभी भी इस हाड़पिंजर से बाहर आ सकती थी। हाथ में छोटे डंडे के सहारे चलते बूढी काकी गति पास आते हुए और भी शून्यता को प्राप्त हो रही थी।इन्दु का हृदय बूढी काकी को देख कर गर्म तवे पर पड़े मोम की तरह पिघलने लगा उसको विद्यालय की चिंता से मुक्ति मिल चुकी थी पर अब उसका मन और भी व्याकुल हो उठा। आखिर यह काकी इतनी सुबह अकेले कहाँ जा रही है ? इतना निर्जीव वह किसी इंसान को आज से पहले कभी नहीं देखा था।
अगले ही पल वह दौड़कर वह सेतु पर फिर चढ़ गया और दौड़ कर बूढी काकी के पास आ गया। उसको आता देख काकी के कदम वहीँ रुक गए। इन्दु उनके पास आकर कुछ पूछता की काकी वहीँ बैठ गयी। शायद बहुत तक गयी थी।
काकी आओ अपना डंडा पकड़ा दो मैं तुम्हे नदी पार करवा दूँ इन्दु ने उनसे पूछा पर भी बोल पाने में असमर्थ थीं। उन्होंने इशारों से कुछ खाने की इच्छा व्यक्त की।
हाँ काकी मै तुम्हे खाने को दूंगा पर उसके लिए तुम्हे मेरे साथ उस पार चलना होगा।
उसने दादी को खड़ा किया और डंडे से सहारा देकर नदी के किनारे ले आया। इन्दु ने अपने स्कूल के लिए लाये टिफिन को खोलकर काकी के सामने पेश किया। टिफिन में रोटी और गुड़ था और दादी के दांत नदारद थे इस स्थिति को भांपते हुए इन्दु ने गुड़ को छोटे छोटे टुकडों में तोड़ दिया। बूढी काकी ने निवाला उठाया पर कमजोर पकड़ की वजह से वह निवाला जमीन पर गिर गया। इन्दु ने अपने हाथ से निवाला तोडकर काकी के मुँह में दाल दिया , थोड़ी परेशानियों के बावजूद काकी ने उसे खा लिया , काकी के मूर्छित चेहरे पर एक एक निवाले के साथ तेज बढ़ता गया। ४-६ निवाले खाने के बाद काकी नेसंतृप्त भरी डकार ली पर इतने जल्दी किसी का पेट कैसे भर सकता है इन्दु सोच में पद गया।
इन्दु पास पड़े नारियल के खोपड़े में महिसागर नदी का पानी ले आया और काकी से पीने का आग्रह किया। काकी ने अपने होंठ खोले और तृष्णा को तृप्त करने के लिए खोपड़े से जल अपने कंठ से नीचे उतारा। इन्दु उन्हें देख कर बहुत प्रसन्न हुआ। काकी ने इन्दु के सर पर हाथफेरा और वो पहली बार बोलीं - जुग जुग जियो बेटा।
काकी खुद बिना सहारे के कड़ी हुईं और अपने डंडे के सहारे अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी, इन्दु भी विद्यालय के लिए भागा , सेतु पर इन्दु की चाल जंगल के घास के मैदान में चहलकदमी करते हुए मृग की भांति थी। सेतु पर सामने उसे कुछ चमकता हुवा जान पड़ा पर उसे तनिक भी परवाह उसकी नहीं थी क्यूंकि विद्यालय जाने में देर हो चुकी थी और किसी चमकीली वस्तु में वह आकर्षण नहीं था जो उसे सम्मोहित कर अपने कर्तव्यमार्ग से विचलित कर सके। भागते हुए वह उस चमकीली वस्तु के पास आ चुका था , भागते हुए उसने एक नज़र जब उस चमक पर मारी तो उसके होश उड़ गए , वहां सोने की एक मुहर पड़ी थी। बिलकुल खरा सोना। उसने गौर किया तो पाया वह मुहर उसी जगह पड़ा है जहाँ काकी मूर्छित होकर बैठ गयी थी। कहीं यह मुहर बूढी काकी का तो नहीं , ऐसा सोचते हुए उसने पीछे देखा तो काकी गायब।

उसने नजरे दूर दूर तक दौड़ाई पर दादी कहीं नज़र नहीं आयी , अभी तो पल भी नहीं हुए थे और काकी का कुछ अता पता नहीं। कच्छपचाल से चलने वाली काकी को क्या पर लग गए की वो उड़ गयी।

Must read
24/06/2019

Must read

From कृष्ण कौस्तुभ मिश्र's stories series.
Story Name : Saving Innocence
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There was a little Ragpicker named ‘Bhulya’ living on the streets of Varanasi. He never knew his original name as he was an orphan child. His only hope of some income to dehydrate the fire of his stomach was just abandoned drinking water bottles lying on Railway Platforms. He possessed a gentle heart behind his obnoxious face, when he used to work it seemed he had wings to win the race of life. Like other children, He also dreamt of going to school but didn’t manage to save much money to offer to school. He saved 50 Rs. But he had not any plan to spend it on anything which can’t fulfil his starvation.
He used to sleep in trains inside marshalling yard in winter as it was the only shelter he can procure without spending any money on it.
It was an antagonistic cold morning of winter, Bhulya was about to start his busy day after having stale-bread, he found in bin last night. He settled his money in an empty matchbox and hid it below to a rail line so that no one can notice it to give him an economical shock after a super fast train run. He noticed a white ‘Parhia’ breed injured puppy lying on a railway track. His front leg was heavily bleeding and he was crying in pain. It was an awful condition for that little heart. He ran to him, held him in his hands and gave his all efforts to stop bleeding but failed. He did not understand, what should he do? He started running towards a veterinary hospital situated next to Varanasi Railway Station.
Doctor Please save his life, He is in extreme pain said Bhulya.
Vet : Where have you got him?
Bhulya: At Railway Track and please don’t waste time on this foolish interrogation.
Vet : Okay, Okay Little guy, let me examine him. Keep him on the examination table.
Bhulya was very curious what is he going to do to him? But he knew that he was professional and can give him required treatment, He put him on the table and Ran away speedily.
Veterinary was shocked and asked him to stay but he was least interested in any type of conversation.
After an hour, He came something hidden in the cage of his fist. He offered his all savings to veterinary to save puppy’s life. Doctor understood the situation and his heart melted for his innocence. Bhulya refused to take his money back and insisted vet to keep it.
Puppy’s surgery was done and he had lost his paw but did well and his wound recovered in few months.
Bhulya and Tommy still living together, Whenever he comes late to his so-called home, He licks him until his face gets all wet.

I am selected as Award contestant for 'Author of The week'  for my Story 'परिणाम की घड़ी' Voting lines are open till Mond...
01/04/2019

I am selected as Award contestant for 'Author of The week' for my Story 'परिणाम की घड़ी'
Voting lines are open till Monday Night.
It is humble request to all of you to visit the link given downside and If you like the story, Please vote for me...
Thanks
https://awards.storymirror.com/author-of-the-week/hindi/nominees/

26/06/2018

बेशक, वक़्त बदल जाए, हालात बदल, मैं बदल जाऊँ, तुम बदल जाओ,
दरमियाँ दोनों के ये रिश्ता बदल जाए .. हाँ मगर, कुछ लमहों में, कुछ लफ़्ज़ों में सदा, मैं याद आऊँगा .. और बेहिसाब आऊँगा ..!!
🤘💞

25/06/2018

कोई लड़की अगर तुम्हें तुम से "आप" कहने लगे तो समझ लेना

शेरवानी की नाप देने का समय आ गया है
😜

महादेव 🙏🙏
25/06/2018

महादेव 🙏🙏

कदम वही रूक जाते है मेरे..जहां कोई कह दे कि रुको तो "चाय " बन रही है पी के जाओ..❤❤❤
24/06/2018

कदम वही रूक जाते है मेरे..
जहां कोई कह दे कि रुको तो "चाय " बन रही है पी के जाओ..
❤❤❤

That's like my bro...
02/01/2017

That's like my bro...

29/12/2016

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