Xcell Breeding & Livestock Services Private Limited

Xcell Breeding & Livestock Services Private Limited Xcell Breeding Inc. is to market top quality genetics to the Indian dairy farmers directly offering 'best bulls at best prices'
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Xcell Breeding has been supplying the India and International genetics market with world class bull semen. We are one of the leading bull semen wholesalers in the India, providing high quality semen for many of the better known direct semen selling companies. With such a large expanse of top quality bulls, whilst continuing to wholesale around the world, in the India. Xcell Breeding.com was create

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Working in partnership with Indian Dairy Farmers we endeavour to ensure your peace of mind with regards to pricing - any orders placed will benefit from our price promise to you. The price per straw is secured on the day of order and delivery may be reserved up to six months in advance. Should the market price increase before delivery, you still pay the price when ordered. Should the price decrease by the delivery date you only pay the new lower price. We also operate a Loyalty Scheme – allowing us to reward customers throughout the year with the best level of pricing available. Customers are allocated their own personal breeding adviser who will advise on the bull traits required for the herd. Operating our own personal delivery service, deliveries can be made to suit the Farm; thus enabling you to have the stock delivered as and when required on the farm to avoid handling and storage. XcellBreeding.com continues meet the Indian dairy farmers needs combining a top quality service with ''best Bulls At best Prices'

We try to give the best breeding conditions possible to our breeders, as well as the best quality semen. Our belief in using semen that have actually performed well. We have a network of professional agents around the world. Please contact us for their details.

17/08/2023

🐄 Exciting News for Farmers and Entrepreneurs! 🐃

We're thrilled to share the latest development in the world of agriculture! The Department of Animal Husbandry (DAHD), as part of the Rashtryia Gokul Mission scheme by the Government of India, has given the green light to an incredible project - the establishment of Breed Multiplication Farms (BMF) on an entrepreneurship model.
The goal? To provide our hardworking farmers with access to high genetic merit and disease-free heifers of both cattle and buffaloes at an affordable cost. The project is all about empowering our agricultural community and enhancing the quality of livestock.
Here's the scoop:
🌱 The DAHD is offering a fantastic opportunity with a one-time assistance program for the establishment of breeder farms. This assistance covers a whopping 50% of the project cost, with a maximum capital subsidy of Rs. 2 Crore.
🏞️ For those entrepreneurs located in the enchanting North Eastern and Hilly States, there's even better news! You'll receive a 50% assistance for establishing your breeder farm, with a cap of Rs. 50 lakh. The remaining 50% can be managed through loans obtained from scheduled banks or other financial institutions like NCDC, with terms and conditions to be determined by these institutions.
💼 Are you thinking about financing through a bank? No worries! The beneficiary's contribution is set at a minimum of 10% of the total project cost.
💰 If you're considering a self-financed project, rest assured that your contribution won't exceed 37.5% of the total project cost.
📢 Attention all entrepreneurs and applicants! The National Dairy Development Board, the implementing agency for this groundbreaking initiative, is now inviting Expressions of Interest (EOI) from all eligible candidates. This is your chance to be a part of a game-changing project that will not only revolutionize the livestock industry but also uplift countless farmers and communities.
Don't miss out on this incredible opportunity to make a real difference in the world of agriculture. Let's work together to create a brighter future for our farmers and livestock enthusiasts. 🌾🚜

We will share the details via PPT/Video soon. Are you interested in receiving this information? Please share your response with us at [email protected]. Thank you!

बड़ी ख़बर: हमारे लिए गर्व की  क्षणों में यह घोषणा  करते  है की हम, एक्ससेल ब्रीडिंग एंड लाइवस्टॉक सर्विस प्राइवेट लिमिटे...
22/01/2020

बड़ी ख़बर:
हमारे लिए गर्व की क्षणों में यह घोषणा करते है की हम, एक्ससेल ब्रीडिंग एंड लाइवस्टॉक सर्विस प्राइवेट लिमिटेड को उत्तर प्रदेश पशुधन विकास बोर्ड द्वारा पशु बीमा सेवा प्रदाता के रुप में नामित किया गया है।

हम पशुपालन, बीमा, पशु स्वास्थ्य देखभाल और पशुधन विस्तार सेवाओं से संबंधित डेयरी किसानों की जरूरत को उनके दरवाजे पर संबोधित करने का प्रयास कर रहे हैं।

डेयरी किसान को इस सेवा की आवश्यकता होती है क्योंकि सफलता के लिए यह आवश्यक है। तथ्य यह है कि हमारे डेयरी किसानों ने महसूस किया है कि सरकार और सहकारी एजेंसियों द्वारा प्रदान की जा रही समान सेवाओं की बढ़ती मांग है यह स्पष्ट है।
धन्यवाद

Great News:
Its proud moments for us to announce that We, Xcell Breeding & Livestock Service Private limited has been nominated us for cattle insurance service provider by Uttar Pradesh Livestock Development Board in Uttar Pradesh.

We are trying to address the need of dairy farmers related to cattle breeding, insurance, animal health care and livestock extension services at their doorstep.

A dairy farmer needs this service as the same is essential for success. The fact that dairy farmers within our target area have realised this need is evident from the increasing demand for similar services being provided by the government and cooperative agencies.
Thank you.

"भारत को बनायेगे ब्राज़ील।"मित्रो आज ऊपर के इस टॉपिक पे और आज कल जो माहौल हे उसके बारे में अपने कुछ विचार रखना चाहता हूं...
11/01/2020

"भारत को बनायेगे ब्राज़ील।"

मित्रो आज ऊपर के इस टॉपिक पे और आज कल जो माहौल हे उसके बारे में अपने कुछ विचार रखना चाहता हूं।

# हम अपनी देसी गायो का दूध बढ़ाना चाहते हे और इसके लिए हमारे पास सही सांढ नहीं हे ऐसा मानकर हम ब्राज़ील से ऊंचे दूध वाले सांढ का वीर्य मंगवा रहे हे।

-> इस विषय पर पहले भी बाहोत बाते हो चुकी हे , विरोध हो चुका है । में इस विषय पर बात नहीं करना चाहता हूं। लेकिन उससे भी ऊपर के विषय के ऊपर आज अपने विचार रखना चाहता हूं।

पहली बात :

"कैसे ??? "

ब्राज़ील ने हमारी गायो से बेहतर दूध निकालने वाली पीढ़ी बनाई "कैसे" ?

क्या किसी ने ये सोचा ?

क्या किसी ने ये पूछा ?

क्या किसी ने ये जानने की कोशिश की ?

जो जीन्स उनके पास गए थे वो तो हमारे ही थे। और वो ही जीन्स अब भी हमारे पास हे । तो हम पीछे गए और वो आगे कैसे ??

दूसरी बात :

दूध कैसे बढ़ेगा उसकी किसी के पास कोई सटीक माहिती हे ???

एक पशु के अंदर ऐसी क्या प्रक्रिया होती हे जिसके अंत में गोबर, मूत्र, दूध निकलता हे , क्या ये किसी को सही से पता हे ?

जेनेटिक्स तो बहोत् बाद में आता है , लेकिन फ़िर भी वो कैसे काम करता है वो किसी को पता है ?

एक गाय का खान पान कया होना चाहिए ये किसी को पता हे ??

-->ऊपर के मुद्दों में हमारे पास सुनी सुनाई बाते हे या तो फिर कुछ दादिमा के ज़माने के नुस्खे हे लेकिन सही में पक्के तौर पर कोई कुछ नहीं जानता है।

भाईयो।

ब्राज़ील ने एक यूनिट हो कर ये प्रगति की हे।

एक देश हो कर ये प्रगति की हे।

अच्छे फॉडर को डेवलप किया।

अच्छे चारो और खान पान को ढूंढा।

उसके बाद उन्होंने जेनेटिक्स पे काम चालू किया।

वहा एक bull jo proven हुआ उनके सीमेनो को ज़्यादा से ज़्यादा उन्होंने फैलाया ,सब फार्म में से अच्छे से अच्छी प्रॉजेनी को ढूंढा गया और उनका फैलाव किया गया।

वो नहीं के मेरा सांढ सबसे बढ़िया ,में किसी को ना दू।

वो नहीं के किसी दूसरे की गाय घटिया मेरी aachi।

वो नहीं के मेरा बाड़ा सबसे अच्छा दूसरो का घटिया।

भाई साब सबने वैज्ञानिक तौर तरीकों से आगे बढ़े। एक जेनेटिक्स १०० गायो में से १० गायो में कुछ अलग परिणाम लाया , तो उस दस गायो को ढूंढा गया और उनके जेनेटिक्स को आगे धकेला।

फिर चाहे वो गाय या सांढ किसी भी फार्म का क्यों ना हो।
सबने एक साथ मिलकर काम किया।

तब जाकर आज ६० सालो के बाद ये ब्राज़ील बना हे।

यहां तो ये मामला हे की अपनी लकीरें बड़ी करने के लिए दूसरो कि छोटी की जाती हे।

में बड़ा , मेरा बाड़ा अच्छा , मेरी गाय अच्छी , मेरा सांढ अच्छा।

इस "में" के चक्कर में गाय के संवर्धन का तो सत्यानाश हो गया।

दूसरो के ऊपर किचल उछाले जाएंगे।

दूसरो की गायों में बीमारियां हे ऐसी अफ़वा उड़ाई जाएगी।

एक दूसरे को नीचा दिखाने से फुर्सत मिलेगी तो ही तो कुछ दिमाग सही दिशा में जाएगा ना।

यहां क्या खिलाना हे वो मालूम नहीं हे और चले हे ब्राज़ील बनाने।

अरे सिर्फ गायो के खुरों को स्वस्थ रखकर भी आप २ ब्यात एक गाय में से ज़्यादा ले सकते हो। यहां तो गायो के पैरो में खुर मुड़के रजवाड़ी जूती बन चुके होते हे।

सीधा ही जेनेटिक्स की बाते चालू कर दी। अरे भाई ५० लीटर वाली गाय बनाना तो दूर की बात हे लेकिन आज किसी की ५० लीटर वाली गाय उनके आंगन में बांध दो तो १ महीने में १० लीटर की हो जाएगी । क्यों की भाई साब को मालूम ही नहीं हे की ऐसी गायो का रखरखाव केस करे।

और सबसे ज़्यादा बेड़ा गरक किसी ने अगर किया हे तो वो "जय गौमाता" वालो ने किया हे।

भाई अगर आप इनको "माता " बुलाते हो तो जो भी माता दे रही हे उनसे खुश रहो।
मेरी मां aachi तुम्हारी मां घटिया ये कोई करता है क्या ?

अगर "माता " बोलते हो तो फिर संवर्धन का तो मुद्दा ही नहीं बचता।

गौ को "मां" क्यों बोला गया उसका खुद का ही बड़ा अपभ्रंश फैला चुके है कुछ लोग।

गौ अपने दूध और उपयोगिता के चलते , मनुष्य के लिए वरदान स्वरूप उपयोगी उत्पादन के चलते उनको माता बोला गया हे। अगर वो अपनी उपयोगिता ही खो देगी तो वो बिरुद भी नहीं रहेगा।

धर्म और विज्ञान दोनों के बीच में संघर्ष पहले से रहा हे और रहेगा।

आप या तो वैज्ञानिक तरीको से संवर्धन करके दूध, नस्ल को आगे बढ़ा सकते हो।

या तो "गौमाता" करके जो हे उसी में खुश रहो और संवर्धन की बात करना ही छोड़ दो।

भारत को ब्राज़ील जैसा दूध पेदा करने के लिए कुछ प्राथमिक मुद्दों पे काम करना जरूरी है।

१. गाय के खान पान को सुधारो। मिनरल दो, साफ पानी दो, सही चारा दो ।

२. संवर्धन सिर्फ प्रोवेन सांढ से हो , चाहे कृत्रिम गर्भधान हो लेकिन सही जेनेटिक्स को ही आगे बढ़ाओ।

३. साथ मिलकर काम करो, एक दूसरे को मदद करो।

डेयरी मैनेजमेंट में वैसे तो बहॉ त सारे मुद्दे होते हे लेकिन वो सब इस माहौल में तो पहोच के बाहर हे। लेकिन इन दो प्राथमिक मुद्दों के ऊपर अभी ध्यान दिया जाए तो भी बाहोत् हे।

बाकी देश आज़ाद हे, जिनको जो सही लगता हे वो करो।

अगर कुछ ना करना चाहते हो तो कम से कम झूठे मार्गदर्शन ना दे, एक दूसरे पर कीचड़ ना उछाले, और किसी के ऊपर अंध विश्वास ना करे ।

ब्राज़ील तो मेरा देश बनने से रहा, अगर यही मानसिकता से चलते रहे तो आज नहीं अगले २५ सालो के बाद भी हम यही के यहीं होंगे।

अगर किसी को मेरी पोस्ट से दुख लगा हो तो वो उनका प्रॉब्लम हे।
ये मेरे विचार हे जो मेने यहां मेरे ग्रुप में रखे हे, अगर सही नहीं लगता तो कृपया करके मुजे बताने का कष्ट करें।
धन्यवाद

गौ संवर्धन केंद्र
Gau Gamvardhan Kendra
डॉ गजेंद्र बामणिया
www.gausamvardhankendra.org.in

(Courtesy: Dr S bhogra)

Gau Samvardhan Kendra

We have participated an India-Sweden Business Summit jointly organized  by Confederation of Indian Industry (CII) and Bu...
07/12/2019

We have participated an India-Sweden Business Summit jointly organized by Confederation of Indian Industry (CII) and Business Sweden on Tuesday, 3 December 2019 at the Shahjahan hall, Taj Diplomatic Enclave Hotel, New Delhi.

The Business Summit was organized during the visit of a 100-member high-level Swedish business delegation in conjunction with a very high-level official delegation to India.

07/12/2019
We, Xcell Breeding Inc. have participated in  ‘India – ASEAN Business Summit: Today, Tomorrow, Together’ was organized o...
13/11/2019

We, Xcell Breeding Inc. have participated in ‘India – ASEAN Business Summit: Today, Tomorrow, Together’ was organized on 11th & 12th November 2019 at PHD House, New Delhi. The summit aims to be a venue for all stakeholders from India and ASEAN, to know about the potential & opportunities in the regions as well as to discuss about the practical aspects of doing business. It intends to provide a forum for industry stakeholders to build up new business relations with prospective trade partners in potential sectors. The 2-day event will have Interactive sessions focusing on specific states & sectoral business opportunities between India and ASEAN business heads and policymakers. It has wide participation of Diplomats, government officials (both centre & state of Govt. Of India & ASEAN Countries), Indian Businesses, Foreign Businesses (ASEAN), Think tanks, international organizations, International Chambers of Commerce & Media and Research Organizations & Academicians.

New Helpline no Launched
09/11/2019

New Helpline no Launched

Dr U.V.S.Rana,X-Sr.Scientist N.C.D.C.New Delhi.(Veterinary  Doctor) Visited Our  Koshish Seva Foundation training Centre...
03/10/2019

Dr U.V.S.Rana,X-Sr.Scientist N.C.D.C.New Delhi.(Veterinary Doctor) Visited Our Koshish Seva Foundation training Centre. We have also discussed the subject with our trainees.
For more details Contact Dr J K Saxena +91 8392951118
Or visit our website: www.koshishsevafoundation.org

पशुओं में नस्ल सुधारउन्नत पशु प्रजननउन्नत नस्ल के चुने हुए उच्चकोटि के सांड से प्राप्त बछड़े-बछियों में अधिक उत्पादन क्ष...
30/09/2019

पशुओं में नस्ल सुधार
उन्नत पशु प्रजनन

उन्नत नस्ल के चुने हुए उच्चकोटि के सांड से प्राप्त बछड़े-बछियों में अधिक उत्पादन क्षमता होती है। इसलिये निरंतर विकास हेतु हर समय उन्नत नस्ल के उच्चकोटि के सांड से पशुओं को प्रजनन कराना चाहिए। इसलिये उच्चकोटि के चुने हुए कीमती सांडों का क्रय, उनकी देखभाल, पालन-पोषण की जिम्मेदारी शासन एवं विभिन्न अन्य संस्थानों ने ली है और इन उच्चकोटि के सांडों द्वारा अनेक पशुओं में प्रजनन कराने के उद्देश्य से कृत्रिम गर्भाधान योजना को कार्यान्वित किया गया है।

उन्नत पशु प्रजनन हेतु कृत्रिम गर्भाधान की पद्धति
कृत्रिम गर्भाधान हेतु अनेक पशुओं में गर्भाधान कराने हेतु कम सांडों की आवश्यकता होती है, क्योंकि एक सांड द्वारा कृत्रिम गर्भाधान विधि से 10,000 तक मादाओं में प्रजनन संभव होता है इसलिये उच्चकोटि के सांडों का चयन करना, चुने हुए उच्चकोटि के सांडों का उपयोग मादाओं में प्रजनन हेतु कराना तथा हजारों की संख्या में उन्नत बछड़े-बछिया उत्पन्न कराना कृत्रिम गर्भाधान से ही संभव है। इसलिये कृत्रिम गर्भाधान को पशु विकास का मुख्य आधार तथा पशु विकास की कुंजी कहा जाता है। सारी दुनिया ने इस पद्धति से ही पशुपालन के क्षेत्र में विकास किया है।
प्राकृतिक विधि से सांडों के उपयोग
प्राकृतिक पद्धति से एक सांड द्वारा एक वर्ष में 60 से 100 पशुओं में ही प्रजनन संभव होता है। इसलिये कोटि के नहीं हो सकते, इसलिये इनसे उत्पन्न संतानें उच्चकोटि की नहीं होगी, परंतु उच्चकोटि का सांड चयन कर कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उच्च कोटि की संतानें हजारों की संख्या में उत्पन्न की जा सकती हंै।
कार्य क्षेत्र में कृत्रिम गर्भाधान का नियोजन – पुरानी तकनीकी को छोड़कर नई तकनीकी से जुडऩे में काफी समय लग जाता है। यह कार्य सूचना का आदान-प्रदान कर, परिणाम दिखाने व निरन्तर रूप से विभिन्न वर्गों से जीवित संपर्क करके ही किया जाना संभव है। अपने कार्य क्षेत्र में कृत्रिम गर्भाधान हेतु कार्य का नियोजन निम्नानुसार किया जा सकता है।
प्रजनन योग्य पशुओं का विवरण
कृत्रिम गर्भाधान के कार्यक्रम को सुचारू रूप से प्रारंभ करने के लिये यह आवश्यक है कि कार्यक्षेत्र में 1500-2000 प्रजनन योग्य पशु हो। इसके लिये स्वयं समय-समय पर सर्वेक्षण कर इसकी जानकारी संस्था स्तर पर रखी जाना आवश्यक है। गांव में कम पशु होने की दशा में अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार 10-12 कि.मी. की दूरी तक किया जा सकता है, ताकि समय-समय पर सूचना प्राप्त हो सके एवं समय-समय पर पशु मालिकों से निरन्तर जीवित संपर्क रखा जा सके। इस हेतु मुख्य गांव के आसपास के गांवों का सर्वेक्षण कर,अपनी सुविधानुसार ज्यादा से ज्यादा प्रजनन योग्य पशु अपने कार्यक्रम में लें। सर्वेक्षण के समय देशी/संकर नस्ल/छोटे वत्स/भैंस/बिना बधिया के बैल/बधिया किये हुए सांडों की संख्या की जानकारी भी एकत्र करना आवश्यक है।
तकनीकी स्तर में सुधार
नैसर्गिक रूप से प्रजनन होने पर सामान्यत: 40 प्रतिशत तक पशु गर्भित होते हैं। कृत्रिम गर्भाधान द्वारा भी यह परिणाम प्राप्त किया जाना संभव है। अपने तकनीकी स्तर के ज्ञान के माध्यम से गर्भित होने के प्रतिशत को ज्यादा से ज्यादा अच्छा रखकर ही पशु पालकों में विश्वास जगाया जा सकता है अन्यथा पशुपालकों द्वारा फिर से अपने पुराने तरीके का प्रयोग किये जाने से कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम असफल हो जाता हैं।

Dear Sir,Greetings,We are thankful for an invitation received from H.E Mr Juan Angulo, Ambassador of Chile to the Republ...
27/09/2019

Dear Sir,
Greetings,

We are thankful for an invitation received from H.E Mr Juan Angulo, Ambassador of Chile to the Republic of India, to celebrate the 209th Anniversary of the National Day of Chile, a Reception held at the Shangri-La Eros Hotel, New Delhi on Wednesday, 25th September 2019 .

We have also got a chance to interact with Shri Kiren Rijiju, Hon'ble Minister of State (Independent Charge) Ministry of Youth Affairs & Sports.

TEAM XCELL BREEDING INDIA
Phone:+911212575335
Helpline:+91 800 6989 800
Email:[email protected]
Website:https://www.xcellbreeding.com

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ ही पशुधन में भी प्रथम स्थान रखता है। पशुओं की देखभाल में पशुपालकों को अनेक समस्याओं ...
26/09/2019

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ ही पशुधन में भी प्रथम स्थान रखता है। पशुओं की देखभाल में पशुपालकों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य का प्रारंभिक ज्ञान होना अति आवश्यक है। जिससे उनमें होने वाले साधारण रोगों को पशुपालक समझ सके और उनका उचित उपचार किया जा सके। डेयरी गाय पौष्टिक दुग्ध का उत्पादन कर मानव के भोजन में महत्वपूर्ण योगदान देती है। पशुओं को होेने वाले सभी रोगों में पाचन संबंधी रोग प्रायः होते है। अपच दुधारू गायों में होने वाली एक ऐसी समस्या है, जो कि ग्रामीण एवं शहरी दोनों ही क्षेत्रों में दुग्ध उत्पादन को कम कर भारत को आर्थिक नुकसान की ओर अग्रसर कर रही है। गायों का प्रमुख पाचन अंग रूमेन है, जहाँ पौधों से उत्पन्न सामग्रियों का माइक्रोबियल गतिविधि के कारण संशोधन होता है। अधिक दुग्ध उत्पादन वाले पशुओं में अपच एक प्रमुख समस्या है। अपच की स्थिति में अधिक मात्रा में अपचित भोजन रूमेन में एकत्रित हो जाता है, जिसके कारण रूमेन की कार्य करने की क्षमता एवं वहाँ उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी प्रभावित होते है। जब रूमेन सही तरीके से काम नहीं कर पाता तो जानवरों में इसके कारण अनेकों तरीेके की समस्याएँ जैसे हाजमा खराब होना अफरा आदि उत्पन्न करती है। फलतः उत्पादन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अपच की समस्या सीधे डेयरी फार्म की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। अतः दुधारू गायों की सामान्य शारीरिक क्रिया एवं उत्पादन क्षमता में तालमेल बनाये रखने के लिए उनके भोजन एवं प्रबंधन में पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

1. प्रबंधन
खाने का प्रकार-अधिक मात्रा में दाना देने से पशुओं में अपच की समस्या आती है
कम गुणवत्ता वाला चारा खिलाना/या अधिक मात्रा में दलहनी हरा चारा एवं नयी पत्ती वाला हरा चारा खिलाना।
खाद्यान्न के प्रकार में अचानक परिवर्तन।
2. वातावरणीय
गरम तापमान-वातावरण का अधिक तापमान भी अपच का कारण होता है।
नम हरा चारा-इस तरह का चारा मुख्यतः मानसून के समय मिलता है जो कि पशुओं को खिलाने से उनमें अपच की समस्या उत्पन्न करता है।
3. पशु
ट्रांजिशन पीरियड (प्रसव अवस्था के पहले एवं बाद)
अधिक उम्र
जरका खाना
एक ही करवट लेटे रहने से, आँतों में रूकावट होने के कारण होता है।

दुधारू गायों में मुख्यतः तीन प्रकार का अपच होता हैः-
1. अम्लीय अपचः- रूमेन एसिडोसिस एक महत्वपूर्ण पोषण संबंधी विकार है। यह मुख्यतः उत्पादकता बढ़ाने के लिये अत्याधिक किण्वन योग्य भोजन खिलाने के कारण होता है। स्टार्च खिलाने से अत्याधिक किण्वन होने के कारण रूमेन में बेक्टीरिया की संख्या बढ़ जताी है। ये बेक्टीरिया रूमेन में अधिक मात्रा में वोलेटाइल फेटी एसिड एवं लेक्टिक एसिड का उत्पादन करने लगते है, जिसके फलस्वरूप रूमेन एसिडोसिस एवं अपच की समस्या उत्पन्न होती है।
2. क्षारीय अपचः- अत्याधिक मात्रा में प्रोटीन युक्त भोजन अथवा गैर प्रोटीन नाइट्रोजन युक्त पदार्थ खाने से रूमेन एल्कालोसिस अथवा क्षारीय अपच की समस्या दुधारू पशुओं में देखी जाती है। रोग की विशेषता यह है कि इसमें रूमेन में अमोनिया का अत्याधिक उत्पादन होने लगता है, जिसके कारण आहारनाल संबंधी जैसे अपच, लिवर, किडनी, परिसंचरण तंत्र एवं तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी आने लगती है।
3. वेगस अपचः- मूल रूप से यह विकार वेट्रल वेगस तंत्रिका को प्रभावित करने वाले घावों/चोट/सूजन अथवा दबाव के परिणाम स्वरूप होता है। यह समस्या मुख्य रूप से मवेशियों में देखी जाती है, परंतु कभी-कभी भेड़ों में भी यह विकार देखा गया है।
अपच से जुड़ी समस्याएँ -
रूमिनल एसिडोसिस- रूमेन के पी.एच. का कम होजाना।
रूमिनल एल्कलोसिस- रूमेन के पी.एच. का बढ़ जाना।
अफरा-गैस का पेट में रूक जाना।
अपच के लक्षण-
1. पशुओं का जुगाली कम करना।
2. पशुओं में भूख की कमी।
3. दूध का कम देना।
4. डिहाइड्रेशन
5. पशु सुस्त हो जाता है एवं सूखा तथा सख्त गोबर करता है।
उपचार-
1. पहचान होने पर सर्वप्रथम इसके कारण का निवारण करना चाहिये जैसे यदि खराब चारा हो तो तुरंत बदल देना चाहिये या पेट में कृमि हो तो उपयुक्त कृमिनाशक दवा देनी चाहिए।
2. पेट की मालिश आगे से पीछे की ओर एवं खूँटे पर बंधे पशु को नियमित व्यायाम कराना चाहिए।
3. देशी उपचार-हल्दी, कुचला, अजवाइन, गोलमिर्च, कालीमिर्च, अदरक, मेथी, चिरायता, लोंग पीपर इत्यादि का उपयोग पशु के वजन के हिसाब से किया जा सकता हैं
4. एलोपेथिक-
1. फ्लूड उपचार-अपच प्रभावित पशु को शरीर अनुसार पर्याप्त मात्रा में डी.एन.एस., आर.एल., एन.एस. देना चाहिए।
2. मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड- 100-300 ग्राम 10 लीटर पानी के साथ देना चाहिए।
3. मैग्नीशियम कार्बोनेट- 10-80 ग्राम
4. सोडियम बाई कार्बोनेट- 1ग्रा./कि. भार के अनुसार
5. विनेगार (शिरका) 5 प्रतिशत- 1 मि.ग्रा./कि. भार के अनुसार देना चाहिए।
6. एंटीबायोटिक जैसे पेनिसिलीन, टायलोसीन, सल्फोनामाइड, टेट्रासाइकिलिन का उपयोग किया जा सकता है।
इसके साथ ही-
एंटीहिस्टामिनिक (एविल, सिट्रीजिन) एवं बी.काम्पलेक्स इंजेक्शन दिया जा सकता हैं।
इन सभी एलोपेथिक दवाइयों का उपयोग पशुचिकित्सक की सलाह अनुसार ही किया जाना चाहिये।
अपच के रोकथाम-
1. पशुओं को संपूर्ण मिश्रित भोजन खिलाना चाहिये। दाने एवं चारे (हे) को अलग-अलग नहीं खिलाना चाहिये।
2. पशुओं को रोज निर्धारित समय पर ही भोजन कराना चाहिये।
3. स्वच्छ पानी ही पशुओं को देना चाहिये।
4. चारे में परिवर्तन धीरे-धीरे लगभग 21 दिनों में करना चाहिये।
5. भोजन के साथ कैल्शियम प्रोपिओनेट, सोडियम प्रोपिओनेट, प्रोपायलीनग्लायकोल आदि को ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में दिया जा सकता है।
6. गर्मी के मौसम में छायादार, हवादार एवं ठंडे स्थान में पशुओं को रखना चाहिए ताकि उनमें कम से कम गर्मी का दुष्प्रभाव पड़े।

हिमीकृत बीर्य का वितरण एवं रख-रखाव।वीर्य उत्पादन केन्द्र से वीर्यकोश या कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र तक हिमीकृत वीर्य के स्थ...
22/09/2019

हिमीकृत बीर्य का वितरण एवं रख-रखाव।
वीर्य उत्पादन केन्द्र से वीर्यकोश या कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र तक हिमीकृत वीर्य के स्थानान्तरण या कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र में वीर्य के रख-रखाव के दौरान तापमान के उतार- चढ़ाव के कारण शुक्राणुओं के नष्ट होने या वीर्य के खराब होने का खतरा बना रहता है। विभिन्न केन्द्रों पर बार-बार वीर्य वितरण के दौरान कन्टेनर में तरल नाईट्रोजन की मात्रा कम होने या अन्य कारणों से भी हिमीकृत वीर्य खराब हो सकता है। अतः वीर्य वितरण तथा रख-रखाव के दौरान निम्न मुख्य बातों का बचाया जा सकता है:

Dr GK Bamania
Email: [email protected]
Mobile : +91 8006989800
Website: https://www.xcellbreeding.com

समस्त भारत में।
डीलर बनने के लिए सर्पक करे।
सीमेन, दवाईयां,पशु आहार सस्ता भी अच्छा भी।

1. वीर्य वितरण से पहले नाईट्रोजन सिलेण्डरों को तरल नाईट्रोजन से भरा होना चाहिए।
2. वीर्य प्राप्ति के दौरान नाईट्रोजन सिलेण्डरों को पास-पास रखना चाहिए।
3. एक सिलेण्डर से दूसरे सिलेण्डर में वीर्य का स्थानान्तरण केवल नाईट्रोजन से भरे गोबलैट्स के द्वारा ही व जल्दी से जल्दी करना चाहिए तथा इस कार्य में पांच सैकेंड से ज्यादा का समय नहीं लगना चाहिए।
4. गिनती करने या स्थानान्तरण के लिए एक-एक स्ट्रॉ को हाथ से स्पर्श करने से बचना चाहिए।
5. विभिन्न गर्भाधान केन्द्रों की जरूरत के अनुसार ही हिमीकृत वीर्य को गोबलैटस में भरना चाहिए।
6. प्रत्येक गोबलैट तथा केनिस्टर में रखे वीर्य की सही पहचान अंकित होनी चाहिए।
7. सिलेण्डरों में नाइट्रोजन की मात्रा समय-समय पर जांच कर, उचित स्तर तक रखें।
हिमीकृत वीर्य की थाइंग (पिंघलाना):
हिमीकृत वीर्य को गर्म करके ठोस अवस्था (हिमीकृत अवस्था) से तरल अवस्था में लाने की प्रक्रिया को थाइंग कहते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान हिमीकत वीर्य को उचित तापमान वाले पानी में एक निश्चित समय के लिए डुबोया जाता है। कृत्रिम गर्भाधान के समय यह एक मुख्य व सर्वाधिक संवेदनशील प्रक्रिया है। यदि थाइंग सही तरीके से न की जाए या इस प्रक्रिया के दौरान मुख्य बातों का ध्यान रखने से वीर्य को खराब होने से ध्यान न रखा जाए तो इस से शक्राणुओं पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। अतः थाइंग के समय निम्न मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. एक समय में एक ही स्ट्रा की थाइंग करें।
2. स्ट्रा को कन्टेनर से निकालने के लिए हमेशा लम्बी चिमटी का प्रयोग करें तथा हाथ से कभी स्ट्रा न निकालें।
3. थाइंग के लिए स्वच्छ ताजे पानी का प्रयोग करें।
4. पानी की मात्रा इतनी रखें की पूरा स्ट्रा पानी में डूब जाए।
5. इस कार्य के लिए किसी थर्मस, बिजली चालित थाइंग यूनिट या चौड़े मुँह के बर्तन का प्रयोग किया जा सकता है।
6. थाइंग के लिए पानी का तापमान 35° सें. रखें तथा इसमें 50 से 60 सैंकेंड तक थाइंग करें।
7. केनिस्टर को नाइट्रोजन सिलेन्डर की गर्दन के निचले वाले हिस्से से उपर न उठाएं।
8. सिलेण्डर से निकालने के बाद स्ट्रा को हल्का से झटका दें तथा जल्द से जल्द थाइग वाले पानी में डालें।
9. थाइंग व गर्भाधान के बीच 15 मिनट से ज्यादा का समय न लें।
10. एक बार थाइंग करने के बाद स्ट्रॉ को वापिस हिमीकृत वीर्य कन्टेनर में कभी न रखें क्योंकि इसे दोबारा हिमीकृत नहीं किया जा सकता है।
11. थाइंग के लिए जेब, हवा, बर्फ, हथेली, ए.आई. गन आदि का प्रयोग न करें।
12. घर द्वार पर कृत्रिम गर्भाधान के लिए हिमीकृत वीर्य को तरल नाईट्रोजन कन्टेनर या थर्मश जिसमें 35° सें. तापमान का पानी हो, में ले कर लाएं तथा कभी भी बर्फ, ठण्डे पानी या जेब में न ले जाएं।
13. धूप, गर्मी, हवा, धूल, मिट्टी आदि से वीर्य को बचाकर रखें।
14. थाइंग के बाद स्टा को अच्छी तरह से किसी साफ कपड़े या रूमाल से सुखा लें।
वीर्य वितरण, रख-रखाव तथा थाइंग के दौरान यदि उपरोक्त मुख्य बातों का ध्यान रखा जाए तो मादा जननांगों तक पहुंचने वाले वीर्य की गुणवत्ता अच्छी होगी तथा इससे मादा पशु के गर्भधारण की सम्भावना भी बढ़ जाएगी।

गोमूत्र एबं उसका उपयोगिताआज हम जानेंगे गोमूत्र के उपयोगिता के बारे में।गाय जैसे हमारे लिए बहुत मूल्यबान हैं ठीक उसी तरह ...
22/09/2019

गोमूत्र एबं उसका उपयोगिता

आज हम जानेंगे गोमूत्र के उपयोगिता के बारे में।गाय जैसे हमारे लिए बहुत मूल्यबान हैं ठीक उसी तरह गाय का बरज पदार्थ भी हमारे जीवन में महत्वापूर्ण भूमिका निभाता हैं।तो आइये जानते हैं गाय के बरजनीय पदार्थ(गौमूत्र) के बारे में।

गोमूत्र के लिए सही गाय को चुनना:
जो गाय सक्रिय है और स्वतंत्र रूप से चलती है वह सबसे अच्छी गाय है और हमें उस गाय का मूत्र पीना चाहिए। जर्सी, होल्सटीन जैसी गाय आलसी गाय हैं और वे केवल एक ही स्थान पर बैठती हैं और पैदल नहीं जाती हैं, इस प्रकार की गायों का गोमूत्र उपयोगी नहीं है। भारतीय नस्ल की गाय का मूत्र शुद्ध और सुरक्षित होता है, भले ही गाय इधर-उधर घूम रही हो और कचरा भी खाती हो। गर्भवती गाय का मूत्र नहीं पीना है |
क्या गोमूत्र पीना अच्छा है?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ, हालांकि, गोमूत्र पीने के स्वास्थ्य लाभों के बारे में कम उत्साही हैं, खासकर जब कैंसर विरोधी गुणों का दावा किया जाता है। गोमूत्र कैंसर, मधुमेह और तपेदिक सहित कई बीमारियों के इलाज के रूप में है। केवल एक मादा कुंवारी गाय से लिया जाने वाला मूत्र पर्याप्त होगा, और भोर से पहले एकत्र होने पर यह सबसे अच्छा होगा। गोमूत्र चूहों में गुर्दे की पथरी के विकास को रोकने में मदद कर सकता है।
गोमूत्र में क्या होता है?
गोमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, फॉस्फेट, सोडियम, मैंगनीज, लोहा, सिलिकॉन, क्लोरीन, मैग्नीशियम, मैनिक, साइट्रिक, टार्टरिक और कैल्शियम लवण, विटामिन ए, बी, सी, डी, ई, खनिज, लैक्टोज, एंजाइम, क्रिएटिनिन, हार्मोन होते हैं। और सोने का अम्ल। गोमूत्र के अवयव मानव शरीर के समान हैं। इसमें पचास से अधिक रासायनिक यौगिकों की पहचान की गई है और इसके प्रमुख यौगिकों में बेंजोइक एसिड, फेनिलएसेटिक एसिड, पी-क्रैसोल, थाइमोल और निकोटीन हैं।
गोमूत्र को कब तक स्टोर किया जा सकता है?
गोमूत्र को लंबे समय तक कांच की बोतलों में संग्रहित किया जा सकता है, लेकिन लगभग 15 दिनों तक कांच की बोतलों में संग्रहित करें और फिर ताजा मूत्र ले आएं। गोमूत्र को ग्लास जार में रखें और इसके साथ समान मात्रा में शहद मिलाएं। यह तब तक रहेगा जब तक आप चाहते हैं और आपको ताजा गोमूत्र के समान लाभ मिलेगा।
गोमूत्र एबं उसका उपयोगिता
गोमूत्र का स्वाद क्या है?
गोमूत्र अखरोट का स्वाद लेता है, जो शरीर में वात, पित्त, कफ को संतुलित करने में सहायक है। गाय का मूत्र न केवल एक सामान्य दवा है, बल्कि यह सभी रोगों के लिए एक प्राकृतिक रामबाण औषधि है। यह प्राकृतिक एंटी-सेप्टिक, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-फंगल, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-एलर्जी है और इसे संजीवनी कहा जाता है।
क्या गोमूत्र वास्तव में औषधीय गुण युक्त है?
गोमूत्र पंचगव्य नामक मिश्रण का एक घटक है जिसका उपयोग वास्तु शास्त्र में शुद्धि के लिए किया जाता है। एक गर्भवती गाय का मूत्र विशेष माना जाता है; यह विशेष हार्मोन और खनिज शामिल होने का दावा किया जाता है। म्यांमार और नाइजीरिया में लोक चिकित्सा में भी गोमूत्र का उपयोग किया जाता है।
गोमूत्र में बड़ी मात्रा में सल्फर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व होते हैं। यह मस्तिष्क रोगों, मधुमेह, कैंसर, त्वचा संक्रमण और गठिया के इलाज में उपयोगी है। शरीर के किसी भी प्रकार के जोड़ों के दर्द को ठीक करता है, जैसे घुटने का दर्द, कंधे का दर्द आदि।
यह खांसी, सर्दी, अस्थमा और यहां तक कि तपेदिक (जैसे हर सुबह टीबी का इलाज करने के लिए 3 महीने का समय लेने की आवश्यकता है) जैसे श्वास संबंधी बीमारियों का इलाज करता है।
आप त्वचा पर गोमूत्र का उपयोग कैसे करते हैं?
गोमूत्र (गोमय मुत्र) को शरीर पर लगाने और इसे प्रतिदिन पीने से किसी भी प्रकार के त्वचा विकार ठीक हो जाते हैं।आप अपने चेहरे में गाय का सुद्ध घी और हल्दी को मिक्स कर के लगा सकते हैं।। इसके बाद अगले 15 मिनट तक गोमूत्र की मालिश करनी होगी। अंत में, गाय के गोबर का एक फेस पैक लगाना चाहिए, जिसे 15 मिनट बाद नीम के पानी से धोना चाहिए। इस घंटे भर की प्रक्रिया का पालन करें और दृश्यमान परिवर्तन देखें। दमकती त्वचा के लिए अपनी त्वचा पर और पैरों पर फटी त्वचा के लिए, फटी पैरों की त्वचा पर लगाएं और रात भर लगा रहने दें।
क्या गोमूत्र बालों के लिए अच्छा है?
अपने स्कैल्प पर गोमूत्र लगाने से बालों के झड़ने और रूसी और सिर के अन्य संक्रमणों के इलाज में मदद मिलती है। सिर पर मूत्र लगाने से भी बालों का गिरना कम होता है क्योंकि यह बालों के रोम को मजबूत करता है और बालों को स्वस्थ बनाता है। गौ मूत्र एक एंटीसेप्टिक है, यह संक्रमण, सिर खुजली और रूसी सहित कई सिर समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद करता है।
गाय का मूत्र कैसे और कब पियें:
1. मात्रा
किसी भी बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए - 100 मिलीलीटर (एक बार में या दो बार में आधा)
जो लोग स्वस्थ हैं और गोमूत्र लेना चाहते हैं - 50 मिली (एक शॉट में)
2. समय - खाली पेट पर (सुबह या शाम)
ताजा गोमूत्र पीना बहुत फायदेमंद माना जाता है। गोमूत्र को लंबे समय तक कांच की बोतलों में संग्रहित किया जा सकता है, लेकिन लगभग 15 दिनों तक कांच की बोतलों में संग्रहित करें और फिर ताजा मूत्र ले आएं।
गोमूत्र के साइड इफेक्ट्स, जोखिम कारक और सावधानियाँ:
1. कच्चे गोमूत्र को एक घंटे से अधिक न रखें। इसे कांच, स्टील और मिट्टी आधारित पात्र में ही संग्रहित किया जाना चाहिए
2. 10 साल से कम उम्र के बच्चों को इसके सेवन से बचना चाहिए।
3. यदि आप पुरुष बांझपन से पीड़ित हैं, तो गोमूत्र लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श करें।
4. कम से कम 2 घंटे गोमूत्र पीने के बाद दूध के सेवन से बचें।
5. गोमूत्र के सेवन से पतले और कमजोर लोगों को बचना चाहिए।
6. बाँझपन से पीड़ित पुरुषों द्वारा इसका सेवन नहीं किया जाना चाहिए.
गोमूत्र एबं उसका उपयोगिता
गाय के मूत्र से ग्लोबल वार्मिंग के कारण:
गोमूत्र भारत में अपने औषधीय लाभों के लिए अनुसंधान का एक छोटा सा उद्गम है। यह ग्लोबल वार्मिंग में भी योगदान दे सकता है। जुगाली करने वाले का मूत्र नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन (N2O) का एक स्रोत है। यह एक ऐसी गैस है जो कार्बन डाइऑक्साइड से 300 गुना अधिक शक्तिशाली है। भारत में प्रति गाय या भैंस या अन्य पशुधन पशुओं के गोबर और मूत्र उत्पादन के साथ-साथ 2012 की जनगणना के अनुसार उनकी आबादी के लिए उनके समग्र अनुमान थे, लेकिन कुल नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में गोमूत्र के सटीक योगदान का सटीक अनुमान नहीं लगाया गया है। अपमानित चरागाहों में अधिक N2O उत्सर्जित होती है जो कभी-कभी तीन गुना तक होती थी।

पशुओं के लिए सम्पूर्ण आहार पद्धति:-पशुओं से अधिकतम उत्पादन (मांस, दूध, ऊन इत्यादि) प्राप्त करने के लिए उन्हें संतुलित आह...
21/09/2019

पशुओं के लिए सम्पूर्ण आहार पद्धति:-

पशुओं से अधिकतम उत्पादन (मांस, दूध, ऊन इत्यादि) प्राप्त करने के लिए उन्हें संतुलित आहार खिलाना आवश्यक है। हरे चारे की कमी के कारण पशुओं की पोषक तत्वों की आवश्यकता की पूर्ति नहीं होती है। पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए पशुओं एवं मनुष्यों के बीच में प्रतिस्पर्धा होती रहती है। इस प्रतिस्पर्धा को कम करने के लिए कम गुणवत्ता वाले चारे एवं फैक्ट्रियों ने निकलने वाले खाद्य अवशेषों का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन सभी खाद्य पदार्थों को पशुओं को खिलाने से पहले उचित उपचार करना चाहिए एवं इनके साथ कुछ विटामिन तथा मिनरल सप्लीमेंट्स को भी खिलाना चाहिए।
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हाल ही में 'संपूर्ण आहार' पद्धति उपयोग में लायी जा रही है जिसमें फैक्ट्रियों से निकलने वाले अवशेष का उचित उपचार करके पशुओं को खिलाया जा सकता है। इस संपूर्ण आहार पद्धति का मूल सिद्धांत यह है कि पशुओं को दाना एवं चारे के साथ अन्य पोषक तत्वों को मिलाकर श्रम की भी बचत कर सकते हैं जिनका उपयोग हम कार्यों में ले सकते हैं।
राशन के अवयवों के अनुपात को नियंत्रित करना- सम्पूर्ण आहार के रूप में कम गुणवत्ता वाले चारे एवं दाने के अवशेषों को भी उपयोग किया जा सकता है। संपूर्ण आहार बनाने के लिए खाद्य पदार्थों को प्रकमण करके उसकी गुणवत्ता भी बढ़ायी जा सकती है। इससे खाद्य पदार्थों के कण का आकार भी कम हो जाता, जिससे इनका पाचन बढ़ जाता है।
संपूर्ण आहार से न केवल पोषक तत्वों की उपयोगिता बढ़ जाती है, बल्कि उनकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। अत: इससे कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाला राशन बनाया जा सकता है। जिससे अंतत: दुग्ध उत्पादन बढ़ता है।
सम्पूर्ण आहार के रूप में खाद्य पदार्थ पशुओं के लिए उपलब्ध रहते हैं। यशेच्छ आहार के रूप में पशु को खिलाने से वे अपनी इच्छानुसार खाते हैं, जिससे खाद्य पदार्थ व्यय या बरबाद हो जाते हैं। इससे पशुओं को पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
संपूर्ण आहार के रूप में पशुओं को खिलाने से रुमेन पर भार कम पड़ता है जिसके एसिटिक, प्रोपियोनिक एसिड का अनुपात नियंत्रित रहता है, जिससे दूध में वसा की मात्रा बढ़ जाती है।
खेती के दौरान अनाजों से बचने वाले अवशेषों की घनत्व 30-50 कि.ग्रा./मीटर3 होती है तथा सम्पूर्ण आहार के एक ब्लॉक का घनत्व 360-650 कि.ग्रा./मी.3 होती है। सम्पूर्ण आहार को ब्लॉक या पैलेट के रूप में बनाया जा सकता है, जिससे इनका आवागमन आसानी से हो जाता है।
सम्पूर्ण आहार पद्धति के लाभ - सम्पूर्ण आहार में 60 प्रतिशत मिश्रित चारा होता है जिसमें 35 प्रतिशत गेहूं का भूसा + 15 प्रतिशत बरसीम हे होता है। कुछ प्रयोगों में यह पाया गया है कि बछड़ों को संपूर्ण आहार खिलाने से उनकी वृद्धि दर 450 - 970 ग्राम प्रतिदिन तक हो सकती है। भूसे को यूरिया से उपचारित करके संपूर्ण आहार के रूप में खली के साथ खिलाया जा सकता है। ऐसे सम्पूर्ण आहार 4-8 लीटर दूध प्रतिदिन देने वाली गायों एवं भैंसों के लिए उपर्युक्त है।
सम्पूर्ण आहार पद्धति की सीमाएं- कुछ पशुपालकों द्वारा यह पाया गया कि ज्यादा दिनों तक पशुओं को संपूर्ण आहार खिलाने से पाचन क्रिया में बाधा एवं जोड़ों से संबंधित रोग उत्पन्न होने लगते हैं। ये समस्याएं कम गुणवत्ता वाले चारे खिलाने या फिर ज्यादा पिसे हुए दाने खिलाने के कारण हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान पशुओं में पोषक तत्वों की आवश्यकता बहुत ज्यादा होती है जिनकी कमी को संपूर्ण आहार के द्वारा भी पूरा नहीं किया जा सकता है।
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