29/04/2023
केला की खेती की असीम सम्भावनायें
केला की खेती करनी है तो
तैयारी अभी से शुरू करें
डॉ एसके सिंह
प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी)एवं सह निदेशक अनुसन्धान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय , पूसा , समस्तीपुर, बिहार
केला विश्व के 130 से ज्यादा देशों में उगाया जाता है I भारत, चीन, फिलीपिंस, ब्राजील, इंडोनेशिया , एक्वाडोर ग्वाटामाला, अंगोला बुरुंडी इत्यादि विश्व के प्रमुख केला उत्पादक देश है I विश्व में उत्पादकता के दृष्टिकोण से भारत चौथे स्थान पर है ,इसकी उत्पादकता 34.9 टन/हेक्टेयर है I उत्पादन के दृष्टिकोण से भारत प्रथम स्थान पर है I हमारे देश मेतमिलनाडु,आँध्रप्रदेश ,महाराष्ट्र ,गुजरात, कर्नाटक एवं बिहार प्रमुख केला उत्पादक प्रदेश है I वर्ष 2020-21 के आंकड़े के अनुसार भारत में केला की खेती 924.14 हजार हेक्टेयर में होती है , जिससे 33061.79 हजार टन उत्पादन प्राप्त होता है I बिहार में केला की खेती 35.32 हजार हेक्टेयर में होती है , जिससे कुल 1612.56 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है I बिहार में केला की उत्पादकता 45.66 टन प्रति हेक्टेयर है I देश में, बिहार केला के क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से नवे स्थान पर, उत्पादन में सातवें स्थान पर एवं उत्पादकता के मामले में छठवें स्थान पर है I
बिहार में केला उत्पादन की असीम संभावनायें हैं, क्योकि यहाँ की जलवायु ( 13ºसें लेकर 38ºसें के मध्य तापमान एवं 75-85 प्रतिशत की सापेक्षिक आर्द्रता) केला की खेती के लिए उपयुक्त है I बिहार में केला वैशाली क्षेत्र(मुजफ्फरपुर , समस्तीपुर,वैशाली ,हाजीपुर)एवं कोशी क्षेत्र(खगडिया ,पूर्णिया,कटिहार ,भागलपुर ) में उगाया जाता है I वैशाली क्षेत्र में मुख्यतः लम्बी प्रजाति के केलों की खेती होती है, यहाँ का किसान परम्परागत ढंग से बहुवर्षीय खेती (10-30 वर्ष )करता है, इसके विपरीत कोशी क्षेत्र का किसान बौनी प्रजाति के केला की खेती वैज्ञानिक ढंग से करता है I एक जगह पर केवल 3 केला की फसल लेता है I केला लगाने के लिए रोपण सामग्री सकर ही ज्यादा प्रयुक्त होता है I जिसकी वजह से बिहार की उत्पादकता कम है I यदि हमारे किसान उत्तक संबर्धन द्वारा तैयार पौधों से केला की खेती करना प्रारंभ कर दें तो निश्तित रूप से केला की खेती में उत्पादकता बढ़ेगी I अभी तक बिहार में उत्तक संबर्धन द्वारा केला के पौधें तैयार करने वाली प्रयोगशालावों की संख्या बहुत कम थी , तथा जो प्रयोगशाला थी भी, वह भी केवल ग्रैंड नेने प्रजाति के केलों के पौध बनाते थे , जिन्हें बिहार का उपभोक्ता कम पसंद करता है I बिहार में होनेवाली किसी भी पूजा में बौनी प्रजाति के केलों की मांग बहुत कम होती है या लोग उसे पूजा हेतु प्रयोग करना नही चाहते है , विशेषकर छठ में तो केवल लम्बी प्रजाति के केलों का ही उपयोग होता है I
लम्बी प्रजातियों के केलों की मांग को देखते हुए आवश्यकता इस बात की है की लम्बी प्रजाति के केलों का यथा मालभोग, अलपान, चिनिया, कोठिया, एवं दुध सागर इत्यादि प्रजातियों के केलों का उत्तक संबर्धन द्वारा पौधे तैयार करके किसानों को दिया जाय जिससे बिहार में केला की उपज में आशातीत वृद्धि हो सके एवं किसान वैज्ञानिक ढंग से केला की खेती कर सके I
जो, किसान केला की खेती करना चाहते है ,उन्हें अभी से तैयारी शुरू कर देनी चाहिए I बिहार में केला लगाने का सर्वोत्तम समय जून से लेकर अगस्त तक है I रबी की फसल काटने के उपरांत खेत खाली हो गया होगा I ऐसे में किसान जिस खेत में केला लगाना चाह रहे हो ,उसमे हरीखाद के लिए उपयुक्त फसल जैसे, सनाई, ढैचा , मूंग ,लोबिया इत्यादी में से कोई एक फसल लगा सकते हैं I इस समय वर्षा होने की वजह से खेत में पर्याप्त नमी है I खेत की जुताई करके उसमे छिटकवा विधि से उपरोक्त में से कोई एक की बुवाई कर सकते हैं I ऐसा करने में हमें कम से कम मजदूरों की जरूरत पड़ेगी I जब फसल 45-50 दिन की हो जाय, तब मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके उस फसल को मिट्टी में दबा देते है, ऐसा करने से हमारे खेत को हरीखाद मिल जाती है एवं हमारे खेत की मिट्टी का स्वस्थ भी उत्तम हो जाता है I इसके बाद केला लगाने से केला का बढवार अच्छा होता है ,तथा हमें अच्छी उपज प्राप्त होती है I
PC: Dr SK Singh,Professor, Plant Pathology, RPCAU,Pusa Samastipur, Bihar
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